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जानीये आखीर क्यु प्रभू श्री राम ने बाली को छल से मारा | Why Ram kills bali dishonestly

 बाली का इतिहास


त्रेता युग में जब भगवान विष्णु ने दशरथ पुत्र श्री राम के रूप में जन्म लिया । प्रभू श्री राम के जीवन पर वाल्मीकी ने रामायण ग्रंथ रचा । रामायण ग्रंथ मे  कुल 6 कांड है। जिसमें एक कांड किष्किंधा कांड भी है । इस कांड के अंदर वानर नरेश महाबली बाली का  विस्तृत वर्णन आता है ।

महाबली बाली अपनी बल और शक्ति के कारण जाना जाता था । और बाली का बल आज भी संसार में काफी चर्चित है ।

बाली का इतिहास भी काफी बड़ा है । और बाली और सुग्रीव की कहानी काफी रोचक है । आज हम आपको बाली के इतिहास के बारे में विस्तार से बताएंगे ।

बाली का परिचय :-



नाम बाली
पिता वानरश्रेष्ठ रीक्ष (ऋक्ष )
धर्म पिता देवरज इंद्र
पत्नी तारा
पुत्र अंगद
भाई सुग्रीव
राज्य किष्किन्धा
शस्त्र गदा
पराक्रम दुंदुभी, मायावी का वध और लंकापति रावण को पराजित किया ।
मृत्यु भगवान श्री राम द्वारा |


 बाली का जन्म


बाली किष्किंधा का राजा और वरिष्ठ महाराज रीक्ष का पुत्र था । किंतु ऐसा कहा जाता है  कि देवताओं के राजा इंद्र, महाबली बाली के धर्मपिता  थे ।

बाली और सुग्रीव के जन्म की बहुत ही रोचक कहानी है । एक बार सुमेरु पर्वत पे   ब्रह्माजी तपस्या कर रहे थे  और उनकी आंख से दो बूंद आंसू गीर गये  । ब्रम्हाजी अपनी तपस्या में लीन थे उसी समय एक बूंद धरती पर गिरी जिससे एक वानर का जन्म हुआ ।

तब ब्रह्माजी ने वानर से कहा तुम इस पहाड़ी की चोटी पर रहोगे । कुछ समय बाद यह तुम्हारे लिए अच्छा होगा । वह वानर वहां रहने लगा और रोज ब्रम्हाजी को पुष्प अर्पित करता था ।

ऐसे बहुत दिन बीत गए और फिर एक  दिन रीक्ष राज वहां से गुजर रहे थे । उन्हें बहुत तेज प्यास लगी थी । वह तालाब में झुक कर पानी पीने लगे तभी उन्हें वहां एक परछाई दिखाई दी । उनको लगा उनका कोई दुश्मन है जो उन्हें मारना चाहता है । वह तालाब में कूद गए लेकिन जब वह बाहर निकले तब वो  एक खूबसूरत यूवती के रूप में बदल गए थे । उसी वक्त वहां से इंद्र और सूर्यदेव गुजर रहे थे ।

तब उनकी नजर उस सुंदर युवती पर पड़ी दोनों उस पर मोहित हो गए थे । दोनो से उन्हे पुत्र प्राप्ती हुई | इंद्र से बाली तो सूर्यदेव से सुग्रीव का जन्म हुवा |

इंद्रदेव ने अपने पुत्र बाली को सोने का हार दिया लेकिन सूर्य देव ने अपने पुत्र सुग्रीव को हनुमान जैसा सच्चा मित्र और रक्षक दिया।

फिर वह यूवती फिर से रीक्ष राज बन गई । और वही बाली और सुग्रीव की मां और उसके पिता दोनों थे। रीक्ष  राज ब्रह्मा जी के पास गए और ब्रम्हा ने  उन्हे  किष्किंधा जाने को कहा। वहां जाकर वानरराज रीक्ष  ने अपने बड़े बेटे बाली को वहां का शासन सौंप दिया। और किष्किंधा का राजा बना दिया। कुछ समय बाद रिक्ष राज की मृत्यु हो गई।

बाली का विवाह


किष्किंधा नरेश बाली का विवाह वानर वेदराज की पुत्री तारा के साथ हुआ था। पौराणिक कथा के अनुसार यह कहा गया है कि जब समुद्र मंथन हुआ था। तब उसने 14 मणियों में से एक अप्सरा भी थी। उन्हीं अप्सरा के साथ एक तारा थी। जिस पर बाली और सुमेश दोनों मोहित हुए। वे दोनों समुद्र मंथन में देवताओं के साथ रहे थे।

भगवान विष्णु के कहणे पे तारा का विवाह बाली से हुवा |


बाली का बल और शक्ति


महाबली बाली के पास 100 हाथियों के बराबर था। वह बहुत ही शक्तिशाली राजा था। ऐसा कोई भी योद्धा नहीं था जिनको बाली ने युद्ध में परास्त ना किया हो। ऐसा भी कहा जाता है कि देवराज इंद्र ने बाली को एक रहस्यमय   हार दिया था। जिसमें ब्रह्मा जी ने मंत्रयुक्त कर उसे वरदान दे दिया कि जब भी वह उसे पहनकर युद्ध में जाएगा  तो उसके शत्रु की आधी शक्ति उससे छीन कर बाली को प्राप्त हो जाएगी। जिसके कारण वह और अधिक बलशाली हो जाएगा।

बाली के अंदर इतना बल था कि वह एक बार लंकापति रावण को भी अपने कांख में दबाकर पूरी पृथ्वी में घुमाया था।

बाली ने रावण को अपनी भुजाओं के बीच  रखा था। बाली को मारने के लिए रावण संध्या के समय अपने पुष्पक विमान में बैठकर बाली के पास गया। उस समय बाली संध्यावंदन कर रहा था।

रावण ने उसके पीछे से वार करने का सोचा था। लेकिन तभी बाली ने रावण को देख लिया और उसको अपनी कांख में दबा दिया। और उसको पूरी पृथ्वी का चक्कर लगाया।

रावण बाली के बल को देखकर डर गया और उससे मित्रता के लिए हाथ बढ़ाया। तब बाली ने उसका प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।

एक असुरी स्त्री माया के दो पुत्र मायावी और दुंदुभी एक बार दुंदुभी ने बाली को युद्ध के लिए ललकारा।

बाली किसी की युद्ध की ललकार से युद्ध के लिए तैयार हो जाता था। बाली ने दुंदुभी के साथ भी ऐसा ही किया।  महाबली ने दुंदुभी को बड़ी आसानी से मार दिया। और उसको घुमा कर हवा में फेंक दिया।

जिससे उसके रक्त की कुछ बूंदें ऋष्यमुक पर्वत पर विराजमान ऋषि मतड्ग के आश्रम पर पड़ी। जिसके कारण ऋषि मतड्ग ने बाली को श्राप दे दिया कि जब वह इस पर्वत पर या इस पर्वत के दायरे पर भी प्रवेश करेगा तब उसकी मृत्यु हो जाएगी।

इस तरह महाबली बाली के बल की चर्चा चारो दिशा मे फैल  गयी  |

बाली और सुग्रीव की लड़ाई 

                   
                                                             Image Source:- therednews

एक बार देर रात को दुंदुभी के भाई मायावी ने अपने भाई की मौत का बाली से बदला लेने के लिए उसको युद्ध के लिए ललकारा।

बाली ने उसे बहुत समझाया कि वापस लौट जाये  लेकिन वह माना नहीं। तब बाली और सुग्रीव दोनों उससे युद्ध के लिए चल पड़े मायावी भी उनको आते देख जंगल की ओर भाग गया।

वह भागते भागते एक गुफा में जाकर छिप गया। और उसके पीछे बाली भी गुफा में जाने लगा। बाली ने  सुग्रीव को गुफा के बाहर इंतजार करने को कहा था ।

सुग्रीव काफी देर तक इंतजार कर रहा था। उसके बाद सुग्रीव को गुफा के अंदर से एक आवाज सुनाई दी। और थोड़ी देर बाद गुफा से बाहर खून की धारा निकलती हुई आई।

सुग्रीव ने सोचा कि मायावी ने बाली का वध कर दिया। वह अपनी जान बचाने के लिए गुफा के आगे बड़ा सा पत्थर रख दिया और किष्किंदा लौट गया।

बाली की मृत्यु की बात सुनकर सभी दुखी हुए और बाद में सुग्रीव को किष्किंधा का राजा बना दिया।

काफी दिनों बाद बाली  किष्किंधा लौटा तो उसे आश्चर्य हुआ और वह सुग्रीव से बहुत नाराज हो गया।

बाली ने सुग्रीव को किष्किंधा से निकाल दिया। और उसकी पत्नी रोमा को भी अपने पास रख दिया। बाली सुग्रीव को मारना चाहता था।

लेकिन सुग्रीव बाली से डर के ऋष्यमूक पर्वत में जाकर रहने लगा। बाली वहां नहीं जा सकता था क्योंकि बाली श्राप के कारण बंधित और अगर वह वहां जाता तो उसकी मौत हो सकती थी। ऐसे ही करके बाली और सुग्रीव के बीच शत्रुता हो गई।

भगवान श्री राम और सुग्रीव की मित्रता

                                                          Image Source:- therednews

भगवान श्री राम लक्ष्मण और सीता के साथ वनवास काट रहे थे। तभी रावण ने सीता माता का हरण कर लिया था। तब भगवान श्रीराम अपने भाई लक्ष्मण के साथ वन में सीता की तलाश कर रहे थे। तब उनकी मुलाकात पवन पुत्र हनुमान जी से हुई। हनुमान जी श्री राम के बड़े भक्त थे।

हनुमान जी  भगवान राम को  सुग्रीव के पास ले गए। और उसने मित्रता करवाई। तब सुग्रीव ने अपने भाई बाली द्वारा किए गए अन्याय के बारे में श्रीराम को बताया। तब श्री राम उनकी बात सुनकर बाली का वध करने के लिए तैयार हो गए। लेकिन सुग्रीव को उन पर विश्वास नहीं था कि वह बाली को मार पाएंगे या नहीं।

तब सुग्रीव ने श्रीराम को बाली के बल के बारे में बताया तो भगवान श्रीराम ने कहा कि  "मैं आपको कैसे खुश कर सकता हूं"

सुग्रीव  श्रीराम को 7 पेड़ों के पास ले गये  जिसे बाली ने  एक ही बाण में गिराया था। और सुग्रीव ने श्रीराम से बताया कि अगर आप एक ही बार में इन 7 पेड़ों को गिरा सकते हो। तो आप बाली का वध कर सकते हो। भगवान श्री राम ने सुग्रीव के दावे को स्वीकार कर लिया।

और एक ही बाण के अंदर सातों पेड़ों को गिरा दिया। तब सुग्रीव को विश्वास हो गया। कि भगवान श्रीराम ही बाली का वध कर सकते हैं। और इसके बाद सुग्रीव ने सीता माता को ढूंढने के लिए अपने और अपनी सेना की ओर से पूर्ण सहयोग का वचन दिया। और इस प्रकार भगवान श्री राम और सुग्रीव के बीच मित्रता हो गई।

बाली का वध


                                                          Image Source:- jansatta

भगवान श्री राम ने सुग्रीव को बाली से युद्ध करने के लिए चुनौती देने को कहा। और बाली को युद्ध के लिए ललकारा तब बाली युद्ध करने के लिए तैयार हो गया।

सुग्रीव ने बाली के साथ छल करने के लिए वह वन की तरफ भाग गया। लेकिन बाली भी उसके पीछे भागता रहा। दूसरी तरफ भगवान श्री राम हनुमान जी और अपने भाई लक्ष्मण के साथ बाली को मारने की रणनीति बना रहे थे।

वन में जाकर बाली और सुग्रीव के बीच युद्ध चल रहा था। तब भगवान श्री राम ने बाली और सुग्रीव को एक समान देखकर वह बाली को पहचान नहीं पाए और उन्होंने बाली पर बाण नहीं चलाया।

तब इस युद्ध में सुग्रीव को काफी चोट लगी लेकिन सुग्रीव ने बाली से बचने का उपाय निकाल दिया और वह वहां से भाग गया।

फिर सुग्रीव ने भगवान श्रीराम से कहा कि "आप ने बाली का वध क्यों नहीं किया। बाली पर आपने बाण क्यों नहीं चलाया।" तो भगवान श्रीराम ने कहा कि "आप दोनों भाई एक जैसे दिखते हो तो मैं तुम दोनो मे  बाली कौन था उनको पहचान नहीं पाया इसी कारण मैंने बाण  नहीं चलाया |"

फिर भगवान श्री राम ने सुग्रीव को फूलों की माला पहनाकर बाली को युद्ध के लिए ललकार ने को कहा।

तो सुग्रीव ने फूलों की माला पहन कर किष्किंधा गया और फिर से बाली को युद्ध के लिए ललकारा। बाली ने कहा "तुम कायर हो आज तो मैं तुम्हारा वध करके ही रहूंगा" और बाली और सुग्रीव के बीच युद्ध शुरू हो गया।

तब भगवान श्री राम बाली को आसानी से पहचान गए। और बाली पर पेड के पीछे से बाण चला दिया और बाली गीर पडे ।

बाली के अंत के बाद की कहानी


भगवान श्रीराम ने जब बाली को बाण मारा तो बाली वही बाण लगे तड़पता रहा। और सुग्रीव से पूछा कि मुझ पर ऐसे छुप कर वार किसने किया।

तब भगवान श्री राम वहा गए और उन्होंने बोला कि "मैंने ही आपके ऊपर छिपकर वार किया" तो बाली गुस्सा हुआ और भगवान श्री राम से कहा "आपने मेरे साथ ऐसा क्यों किया"

तब भगवान श्रीराम ने बाली को समझाया कि  "आप अपने छोटे भाई सुग्रीव के साथ घोर अन्याय किया  है | बडा भाई ,पिता और गुरु तीनो एक समान पूजनीय है उसी प्रकार छोटा भाई , पुत्र और शिष्य तीनो एक समान माने गये है | अपने छोटे भाई के साथ अन्याय करके उसे अपने राज्य से निकाल दिया  और उसके जिते जी उसकी पत्नी को अधर्म और अनीति से उसपे अपना अधिकार बनाया ऐसे पुरुष का वध करना ही उसके लीये उपयुक्त दंड माना गया है | " ये सुनकर  बाली अपने किये पर पछताया और उसने भगवान श्रीराम से माफी मांगी।

तब भगवान श्रीराम ने कहा कि जब मैं द्वापरयुग में श्री कृष्ण का जन्म लूंगा। तब तुम्हारा जन्म जरा के रूप में होगा। और उस समय मेरी मृत्यु के कारण तुम ही बनोगे।

तभी वहां पर बाली पुत्र अंगद पहुंच गया। और बाली ने अपने पुत्र को उनके चाचा सुग्रीव के साथ रहकर उनकी सेवा करने को कहा है। इतना होने के बाद बाली का अंत हो गया।

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