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जानिए सूर्य देव के जन्म की कथा | birth story of sun god

भगवान सूर्य की उत्पत्ति का रहस्य क्या है ? और उनके जीवन में जुड़ी हुई कुछ महत्वपूर्ण बातें ।


 पृथ्वी पर जीवन यदि है , तो सिर्फ सूर्य देवता के वजह से ही मुमकिन है । वेदों मे भगवान सूर्य को जगत की आत्मा कहा गया है | विज्ञान भी सूर्य देव की अस्तित्व की महत्वता को अच्छी तरह से समझता है । यदि हम वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो सूर्य देव की बिना पृथ्वी पर कोई भी चीजें जीवित नहीं रह सकती हैं । भगवान सूर्य देव की पूजा , अर्चना एवं उनकी महत्वता पौराणिक काल से ही चली आ रही है । हमारे भारत के वैदिक काल के इतिहास में भी भगवान सूर्य देव की वेदों और शास्त्रों में स्तुति का वर्णन किया गया है । मगर सभी लोगों के मन में यह सवाल उठता है , कि आखिर शनि देव की उत्पत्ति कैसे हुई है ? और इनके उत्पत्ति का रहस्य क्या है ? वेदों एवं शास्त्रों के अनुसार सृष्टि के आरंभ में ब्रह्मा जी के मुख से ओम शब्द का उच्चारण हुआ था । यही ओम शब्द सूर्य के प्रारंभिक स्वरूप मे था। उसके बाद भू: भुव एवं स्व शब्द उत्पन्न हुआ था। यह तीनों शब्द पिंड रूप में ओम में विलीन हो गए । तब जाकर सूर्य देवता को स्थूल रूप प्राप्त हुआ । जैसा कि सूर्य देवता सृष्टि के प्रारंभ में ही उत्पन्न हुए थे , तो इनको आदित्य नाम से संबोधित किया गया । चलिए जानते हैं इस लेख के माध्यम से सूर्य देव का जन्म कैसे हुआ और इनके जन्म से लेकर क्या मान्यताएं रही हैं ।



भगवान सूर्य देव की पौराणिक जन्म गाथा क्या है ? 



शास्त्रों एवं पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान ब्रह्मा जी के पुत्र  मरीचि और मरीचि के पुत्र कश्यप थे । धार्मिक कथाओं के अनुसार महा ऋषि कश्यप का विवाह दक्ष प्रजापति की पुत्री दिति और अदिति से हुआ था । दिति के गर्भ से दैत्यों ने जन्म लिया और अदिति के गर्भ से देवी एवं देवताओं ने जन्म लिया था । तभी से दैत्यों और देवताओं के बीच हमेशा युद्ध होता रहता था । देवमाता अदिति बहुत ही दुखी रहने लगी थी और दुखी जीवन से परेशान होकर देवमाता अदिति ने भगवान सूर्य की आराधना करनी शुरू कर दी । भगवान सूर्य देव माता की तपस्या से प्रसन्न हुए और उनके सामने प्रकट हुए । भगवान सूर्य ने देवमाता अदिति को उनके पुत्र के रूप में जन्म लेने का वरदान दे दिया । भगवान सूर्य के वरदान के मुताबिक देवमाता अदिति को एक तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति हुई । भगवान सूर्य देव ने सभी असुरों एवं दुष्टों का संहार किया था । माता अदिति के गर्भ से जन्म लेने वाले भगवान सूर्य का नाम आदित्य पड़ गया ।



भगवान सूर्य के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी 



भगवान सूर्य ने माता अदिति के गर्भ से जन्म लेकर बड़ी ही निर्दयता से दुष्टों एवं शत्रुओं का विनाश किया था । यही कारण है , कि भगवान सूर्य को क्रूर ग्रह के रूप में भी जाना जाता है । भगवान सूर्य की जन्म भूमि कलिंग देश मानी जाती है । शास्त्रों के अनुसार भगवान सूर्य को प्रसन्न करने के लिए गुड़, गुग्गल की धूप, लाल चन्दन, अर्क की समिधा और कमल के पुष्प का प्रयोग करके भगवान सूर्य को प्रसंचित किया जा सकता हैं।

सूर्य देव का वाहन 


भगवान सूर्य के सवारी के बारे में बात करें तो भगवान सूर्य एक पहिए वाले एवं सात घोड़े वाले जिन का रंग अलग अलग है , उस पर विराजमान रहते हैं । भगवान सूर्य देव के रथ के सारथी अरुण देव है जो की  गरुड देवता के कनिष्ठ भाई है | रामायण के प्रख्यात संपाती और जटायु , अरुण देवता के ही पुत्र थे | भगवान सूर्य के सातों घोड़ों का तेज बहुत ही विकराल होता है । यह सात घोडे सप्ताह के सात दिनों को भी दर्शते है | भगवान सूर्य का मार्ग कभी भी खत्म नहीं होता वह निरंतर रूप से अपने रथ पर सवार होकर अपनी यात्रा को जारी रखते हैं । ऐसा कहा जाता है , कि जब सूर्य भगवान अपनी यात्रा को बंद कर देंगे तो ब्रह्मांड ठहर जाएगा और समस्त जीवन नष्ट हो जाएगा । भगवान सूर्य के रथ के एक पहिए को भागवत गीता में समय काल का स्वरूप दिखाया गया है । वेदों और शास्त्रों के अनुसार भगवान सूर्य जीवन एवं समय के स्रोत दाता हैं ।


भगवान सूर्य की गाथा का वर्णन कौन-कौन से पुराणों में किया गया है ? 



भगवान सूर्य हिंदू धर्म के एक ऐसे देवता हैं , जिनके बिना जीवन संभव नहीं है और इस बात को स्वयं विज्ञान भी अनदेखा नहीं कर सका है । भगवान सूर्य के संपूर्ण गाथा का वर्णन आपको भविष्य, मत्स्य, पद्म, ब्रह्म, मार्केंडेय, साम्ब आदि पुराणों में कहने और सुनने को मिल जाएगा ।


भगवान सूर्य की पत्नियां एवं उनके 10 पुत्र के बारे में क्या कहानी है ?


भगवान सूर्य की दो पत्नियां हैं ,संज्ञा एवं छाया इन दोनों पत्नियों से भगवान सूर्य को संतान प्राप्ति हुई है । दोनों पत्नियों से भगवान सूर्य को कुल 10 पुत्र हुए हैं । भगवान सूर्य की संतानों में स्वयं भगवान शनि और पृथ्वीलोक के मनुष्य के प्राण हर्ता स्वयं यमराज जी हैं । स्वयं भगवान यमराज पृथ्वीलोक के प्राणियों के पाप पुण्य का लेखा जोखा रखते हैं । वहीं पर  स्वयं शनि देव पृथ्वी लोक से निवासियों के दुख एवं सुख का निर्णय लेते हैं । इसके अतिरिक्त भगवान सूर्य की संताने यमुना, तप्ति, अश्विनी तथा वैवस्वत मनु जी हैं। पौराणिक एवं धार्मिक कथाओं के अनुसार मनु जी ही मानव जाति के पहले पूर्वज बने थे ।



भगवान सूर्य का सबसे ऐतिहासिक एवं प्रसिद्ध मंदिर भारत में कौन सा है ? 


भगवान सूर्य देवता एक ऐसे देवता है , जो शारीरिक कष्ट एवं रोगों को भी दूर करते हैं । पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान कृष्ण के पुत्र सांबा को कुष्ठ रोग का श्राप मिला था । तब भगवान श्री कृष्ण के पुत्र सांबा ने ओडिशा के जगन्नाथ पुरी के समीप चंद्रभागा नदी के किनारे भगवान सूर्य की आराधना की थी । भगवान सूर्य ने सांबा के तप से प्रसन्न होकर उनको कुष्ठ रोग से मुक्ति दे दी थी । तब स्वयं सांबा ने कोर्णाक सूर्य मंदिर का निर्माण कराया था । कोर्णाक सूर्य मंदिर से संबंधित इतिहास में कई सारी मान्यताएं मौजूद हैं ।कोर्णाक का सूर्य मंदिर में भगवान सूर्य को इस तरह विराजमान किया गया है , जैसे मानो स्वयं सूर्य देवता अपने रथ पर विराजमान होकर अपने मार्ग की ओर जा रहे हो । कोर्णाक की के मंदिर में भगवान सूर्य के रथ का बहुत ही अच्छी तरह से वर्णन कलाकृतियों के माध्यम से या गया है । यह मंदिर सूर्य अस्त और सूर्य उदय के समय बहुत ही दुर्लभ दिखाई देता है । कोणार्क के सूर्य मंदिर को देखने के लिए देश-विदेश से पर्यटन सेनानी आते रहते हैं ।



भगवान सूर्य के बारे में रोचक जानकारी


सिंह राशि के स्वामी स्वयं सूर्य देवता है । यदि किसी के ऊपर सूर्य देवता की महादशा चलती है , तो वह 6 वर्ष तक रहती है । भगवान सूर्य को माणिक्य रत्न बहुत प्रिय है । भगवान सूर्य को सवत्सा गाय , गुड , तांबा , सोना एवं लाल वस्त्र की वस्तुएं बहुत पसंद है। भगवान सूर्य की धातु सोना और तांबा । सूर्य भगवान की जप संख्या सात हजार है ।


छठ पूजा पर्व का क्या महत्व है ?



भागवत गीता के अनुसार दानवीर कर्ण सूर्य के पुत्र थे और उन्होंने प्रतिदिन भगवान सूर्य की सबसे पहले आराधना करनी शुरू की थी । दानवीर कर्ण प्रातः काल उठकर स्नान ध्यान करके भगवान सूर्य की उपासना किया करते थे । पौराणिक कथाओं के अनुसार सबसे पहले दानवीर कर्ण ने ही सूर्य देवता की छठ पूजा का प्रारंभ किया था। तब से अब तक प्रतिवर्ष छठ पूजा का आयोजन सभी राज्यों में और सभी गांव क्षेत्रों में भी श्रद्धालु लोग करते हैं ।





भगवान सूर्य का प्रभावशाली मंत्र

सभी कष्टों का निवारण करने के लिए एवं शारीरिक बाधा से मुक्ति पाने के लिए भगवान सूर्य का बीज मंत्र-

ऊँ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः




सूर्य नमस्कार क्या होता है और उसके फायदे 


सूर्य नमस्कार को योगासन मे सर्वश्रेष्ठ माना जाता है | सूर्य नमस्कार  सूर्य देवता के प्रति समर्पित भावना प्रकट करता है | सूर्य नमस्कार सुबह खाली पेठ कीया जाता है | सूर्य नमस्कार मे कुल 12 आसन होते है |

हर दिन सूर्य नमस्कार करणे से मानव शरीर स्वस्थ और रोगमुक्त रहता है |

सूर्य नमस्कार से मानसिक शांति और स्मरण शक्ति बडती है |

सूर्य नमस्कार से त्वचा संबंदी के रोग से राहत मिळती है | 

आदित्यस्य नमस्कारन ये कुर्वन्ति दिने दिने |
आयुः प्रज्ञा बलं वीर्यम तेजस्तोषाम च जायते ||

(जो लोग प्रतिदिन सूर्य नमस्कार करते हें उनकी आयु , प्रज्ञा , वीर्य , बल और तेज बडता है |  ) 


निष्कर्ष:-



सूर्य देवता के बिना पृथ्वी पर जीवन मुमकिन नहीं है । सूर्य देवता के वजह से ही सभी पेड़ पौधे अपना भोजन बनाते हैं। हमारे हिंदू धर्म में भी सूर्य देवता को बहुत महत्वता प्रदान की जाती है । हमें प्रत्येक धर्म एवं संस्कृति का सम्मान करना चाहिए ।यदि आपको हमारे द्वारा प्रस्तुत या लेख पसंद आया हो , तो आप इसे अपने परिजन एवं मित्र जन के साथ अवश्य साझा करें ।

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