इंद्रजीत :-
इंद्रजीत रावण के जेष्ठ पुत्र थे |
रावण के कुल मिला के ७ पुत्र थे इंद्रजीत , अतिकाया , अक्षयकुमार , नरांतका , देवांतका , त्रिशिरा , प्रहस्ता |
इंद्रजीत "रावण" और "मंदोदरी" के पुत्र थे।
इंद्रजीत सबसे बडे पितृभक्त थे|
इंद्रजीत की भी पितृभक्ति भगवान राम के समान थी |
जब इंद्रजीत को पता चला की राम स्वयं भगवान हई तब भी उसने अपणे पिता का साथ नही छोडा|
इंद्रजीत का असली नाम मेघनाद था |(जब मेघनाद का जन्म हो गया था तब वो गरजते हुए बिजली की तारह रो रहे थे इसलीये उंका नाम मेघनाद रखा गया)
इंद्रजीत यह उसका नाम नही बलकी उपदि है जो भगवान ब्रम्हा ने उसे दी थी जब उसने इंद्र देव को युद्ध मे हराया था
मेघनाद को शक्रजित , रावणी , घनानाद , वासावजीत , वारीदानाद के नाम से भी जाना जाता है |
शुक्राचार्य महर्षी भृगु के वंशज है |
शुक्राचार्य के पिता का नाम महर्षी कवि है |
शुक्राचार्य महर्षी भृगु के पोते है |
मेघनाद के गुरु शुक्राचार्य थे |
प्रल्हाद , विरोचण, बाली और पितामह भीष्म के गुरु भी शुक्राचार्य थे |
आईशीका अस्त्र , शुष्का अस्त्र , आर्द्र अस्त्र , क्रौंचं अस्त्र , मोहना अस्त्र , प्रशमणा अस्त्र , मानवा अस्त्र, वर्षणा अस्त्र ,शोषणा अस्त्र , संतापणा अस्त्र , विलापणा अस्त्र , सममोहणा अस्त्र , प्रसवपण अस्त्र , सब्दवेदास्त्र , पैशका अस्त्र , नलिका अस्त्र , तेजं प्रभा अस्त्र , शिशिरा अस्त्र ,सुदामणा अस्त्र , शिताईसु अस्त्र , संवर्ता अस्त्र, मौसला अस्त्र , सत्या अस्त्र , माया अस्त्र ,वैद्यधारा अस्त्र, तमासा अस्त्र, सौमणा अस्त्र , नागा अस्त्र , गरुडा अस्त्र, त्वष्टर अस्त्र , मानवस्त्र ,पार्वतस्र , भौमस्त्र , आग्नेयस्त्र , वारूणास्त्र , वायवयासत्र , सूर्यास्त्र , इंद्रास्त्र , मोहिनी अस्त्र , हायग्रीवा अस्त्र , रावाणा अस्त्र , रुद्रा अस्त्र , महेश्वरा अस्त्र, शिवा अस्त्र ,ब्रम्हास्त्र , नारायणास्त्र , ब्राहमशिर्षा अस्त्र , वैष्णस्त्र, पशुपतास्त्र , ब्रह्मांडा अस्त्र |
उपसंहार अस्त्र का उपयोग दुश्मन के अस्त्र खत्म करणे को होता है |
अंधतामिश्र अस्त्र :==> महातरणी अस्त्र
पाखंड अस्त्र :==> गायत्री अस्त्र
अंध अस्त्र :==> चक्षूषमतासत्र
शक्तिनाश :==> विश्वावसुमहस्त्र
अंतक अस्त्र :==> म्रीत्युंजयास्त्र
सर्वस्मृतींनाशन अस्त्र :==> सर्वस्मृतिधारणास्त्र
भय अस्त्र :==> अभयंकराइंद्रस्त्र
महारोग अस्त्र :==> नामतराय अस्त्र
आयुरनाश अस्त्र :==> कळसाम्कार्शांनास्त्र
महासुर अस्त्र :==> मुलदुर्ग अस्त्र
मुक अस्त्र :==> महावाग्वडीन्यस्त्र
वेदातस्कर अस्त्र :==> महावरहस्त्र
हिरण्याकशीप्वस्त्र :==> उग्रानृसिंहस्त्र
बलिन्द्र अस्त्र :==> वामणास्त्र
हाइहय अस्त्र :==> भार्गवस्त्र
द्विविड अस्त्र :==> हलधार अस्त्र
राजसुर अस्त्र :==> वासुदेव अस्त्र
संकर्षण अस्त्र :==> प्रद्युंणास्त्र
कल्यास्त्र :==> कल्क्यस्त्र
ये सारे अस्त्र इंद्रजीत ने गुरु शुक्राचार्य से सीखे थे |
इंद्र को देवो के राजा कहते है |
इंद्र स्वर्ग के राजा कहलाते है |
इंद्र आकाशीय बिजली के , बारीश के , बहती नदी के देवो के देवता है |
वेदिक काल मे किसान बारीश के लीये इंद्र देव की पूजा करते थे |
ऋग्वेदा मे इंद्र का उल्लेख 250 से भी ज्यादा बार आया है |
देव और असूर हमेशा एक दुसरे से युद्ध करते थे |
ऐसे ही एक युद्ध मे असूरो के तरफ से रावण और मेघनाद ने हिस्सा लिया था |
युद्ध बहोत ही घनघोर हुवा, दौरान इंद्र और रावण एक दुसरे से द्वंद्व युद्ध करणे लगे उसमे रावण बेहोश हो गये |
रावण को इंद्र ने कैद करके अपणे रथ मे रखा था |
पिता को बचाने मेघनाद वहा पोहचे और फिर इंद्र और मेघनाद के बीच द्वंद्व युद्ध शुरू हुवा |
बहोत देर तक दोनो एक दुसरे से लडते रहे , कोई भी जीत नही रहा था, दोनो थक गये थे अंत मे मेघनाद ने इंद्र पर जीत हासील की |
मेघनाद ने युद्ध जितने के बाद अपणे पिता को छुराया और इंद्र को अपणे रथ को बांद के उसे घसिट ते हुए लेके जाणे लगा |
ये देख कर भगवान ब्रम्हा जी डर गये , उन्हे लगा की अब मेघनाद इंद्र को मार डालेगा |
तब ब्रम्हा जी प्रकट हुए और उन्होणे इंद्र को जीवनदान देणे की विनंती की मेघनाद ने इंद्र को छोर दिया |
ब्रम्हा जी ने मेघनाद को वरदान दिया की वो सभी युद्ध मे अजेयता रहेंगे सिर्फ एक शर्त होगी की युद्ध से पहले उन्हे अपणे कुलदेवी प्रथ्यंगिरा के लीये यग्न (पूजा )करना पडेगा |
ब्रम्हा जी ने मेघनाद को "इंद्रजीत " की उपदि दी |
तब से मेघनाद को सभी इंद्रजीत केहके बुलाणे लगे |
भगवान हनुमान वानर राजा केसरी और अंजनी देवी के पुत्र है|
हनुमान जी भगवान शिव के अवतार है |
हनुमान जी के धर्मपिता वायुदेव थे इसलीये उन्हे पवणपुत्र हनुमान भी कहते है |
हनुमान जी भगवान राम के सबसे बडे भक्त माने जाते है|
हनुमान जी का बचपण का नाम बजरंग था |
बचपन मे जब हनुमान जी सूर्य को पिला फल समजके निगलणे गये थे तब घुससे मे आके इंद्र देव ने हनुमान जी के जबडे पे वज्र से वार किया और बाल हनुमान धरती पे आके गीर गये |
वज्र के प्रहार से उंका जबडा तूट गया तबसे उन्हे हनुमान जी कहते है |
जब भगवान राम ने हनुमान जी को सीता माता को धुंडणे को भेजा तब हनुमान जी लंका पोहोच गये |
हनुमान जी का लंका जाने का सिर्फ यही एक हेतु नही था बल्की रावण की सेना की जासूसी करना उणकी ताकद जाणणा था |
जब हनुमान जी अशोक वाटिका पोहोच गये तब उन्होने अशोक वाटिका के सेना के साथ रक्षक जांभूमाली और इंद्रजीत के छोटे भाई अक्षय कुमार को युद्ध मे मार डाला |
ये बात सून कर इंद्रजीत क्रोदित हो गये और वो युद्ध के मैदान मे आये और हनुमान जी से युद्ध लडणे लगे |
इंद्रजीत ने बहोत सारे देवीक अस्त्रो का उपयोग किया लेकीन हनुमान जी पे उसका कोई असर नही हुवा|
आखीरकार इंद्रजीत ने ब्रह्मास्त्र का उपयोग किया और ब्रह्मास्त्र के प्रहार से हनुमान जी बेहोश हो गये और इंद्रजीत ने उन्हे कैद करके अपणे पिता के समक्ष खडा कर दिया |
भगवान राम विष्णु के सातवे अवतार है |
भगवान राम का जन्म रघु कुल मे हुवा था |
भगवान राम राजा दशरथ और कौशल्या के पुत्र है |
भगवान राम को तीन छोटे भाई थे लक्ष्मण , भरत और शत्रुघ्न |
भगवान राम बचपण से ही शांत स्वभाव के थे |
भगवान राम ने मर्यादाओ को हमेशा से सर्वोचं स्थान दिया |
ईसी कारण उन्हे मर्यादा पुरुषोतम राम के नाम से जाणा जाता है |
भगवान राम का राज्य सबसे बडा न्यायप्रिय और खुशहाल माना जाता है |
भगवान राम ने अपने तिनो भाईयो के साथ गुरु वाशिठ से शिक्षा प्राप्त की |
माता कैकेयी के कारण प्रभू राम , लक्ष्मण और सीता देवी को 14 साल के वनवास के लीये जाना पडा |
भगवान राम बहोत बडे पितृभक्त थे |
भगवान राम ने अपने पिता के आज्ञा का पालन किया और वे वनवास के लीये चले गये |
वनवास मे बहोत सारी घटनाये घटी , उसमेसे ही एक घटना थी रावण की बहण सुर्पणखा की लक्ष्मण द्वारा नाक काटणा |
जब ये बात रावण को पता चली ,तो रावण ने अपने बहण के अपमान का बदला लेने के लीये सीता माता का अपहरण किया और उन्हे लंका ले गये |
फिर कूच ही साल मे भगवान राम लंका पोहोच गए और रामायण का युद्ध शुरू हुवा |
जब इंद्रजीत के सारे भाई युद्ध भूमी मे राम और ऊनके सेना द्वारा मारे गए तब इंद्रजीत युद्ध भूमी मे भगवान राम के विरुद्ध लडणे आये |
पहले ही दिन इंद्रजीत ने अपना कहर वनरो के सेना पे बरसाना शुरू किया |
सुग्रीव की पूरी सेना को इंद्रजीत ने अकेले ही हरा दिया |
अपने भाईयों का बदला इंद्रजीत वानर सेना को बडे क्रूरता से मार कर ले रहे थे |
जब भगवान राम और लक्ष्मण युद्धभूमी मे इंद्रजीत के आमने सामने आये तब उन तीनो मे बहोत बडा युद्ध शुरू हुवा लेकीन बहोत ही कम समय मे इंद्रजीत ने दोनो को हराया |
इंद्रजीत ने नागपाश अस्त्र का इस्त्तेमाल कीया था ईसीलीये भगवान राम और लक्ष्मण युद्धभूमी मे बेहोश हो कर गिर गये |
भगवान राम और लक्ष्मण को गरुड ने हनुमान जी के कहने पर बचाया था |
दुसरे दिन जब इंद्रजीत को पता चला की राम और लक्ष्मण मरे नही तो वो क्रोदित हो गये |
फिरसे एक बार राम-लक्ष्मण और इंद्रजीत आमनेसामने आये , तीनो मे बहोत घनघोर युद्ध हो रहा था सब उन्हीको देख रहे थे |
इंद्रजीत सभी अस्त्रो का मिश्रण कर रहे थे , आखिरकार इंद्रजीत ने वासावी अस्त्र का इस्त्तेमाल लक्ष्मण पे कीया |
वासवी अस्त्र के विष से लक्ष्मण बेहोश हो गये |
( वासवी अस्त्र से ही महाभारत मे महारथी कर्ण ने घटोत्कच को मारा था जो की उसने अर्जुन के लीये बचा के रखा था | )
तब हनुमान जी हिमालय से द्रोणगिरी पहाड लेके आये और वहा की संजीविणी जडी बुटी से लक्ष्मण जी की जान बचाई |
जब इंद्रजीत को पता चला की फिरसे एक बार लक्ष्मण की जान बच गायी तो वो अपने कुलदेवी प्रथ्यंगिरा के मंदिर मे करणे गये |
ये बात विभीषण को पता चली , विभीषणने भगवान राम और लक्ष्मण को समझाया की अगर इंद्रजीत ने ये यज्ञ पूरा किया तो इंद्रजीत को हराणा असंभव है |
ईसीलीये लक्ष्मण और विभीषण प्रथ्यंगिरा के मंदिर मे गये और उन्होने इंद्रजीत का यज्ञ असफल किया |
मंदिर मे यज्ञ करते समय शस्त्र लाना मना था इसलीये जब इंद्रजीत ने सामने लक्ष्मण को देखा तब वे निहात्ते थे |
इंद्रजीत ने यज्ञ के बर्तन से लक्ष्मण से ही लडणे लगे |
जब लक्ष्मण से जितना मुसकिल होणे लगा तो इंद्रजीत ने ब्रह्मांडा अस्त्र , वैष्णवा अस्त्र और पशुपतास्त्र का प्रयोग किया |
तीनो अस्त्र लक्ष्मण के सामने विफल रहे तब इंद्रजीत अचंभित हो गये और वहा से गायब हो गये |
इंद्रजीत अपने पिता के पास राजभवन मे गये और उन्होने पूरी घटना बताई और कहा ही राम-लक्ष्मण सच मे भगवान का रूप है और अगर सीता माता को अभी उन्हे वापस लौटा के माफी मांग ले तो शायद अपने पिता की और राक्षस जाती की रक्षा हो सक्ती है |
परंतु रावण अपने गर्व मे अंधे हो गये थे और उन्होने इंद्रजीत को युद्धभूमी छोडके आने वाला डरपोक कह कर अपमानित किया तब इंद्रजीत बहोत क्रोधित हुए और वो युद्धभूमी मे वापस लोट गये |
इंद्रजीत को मालूम हो गया था की उन्हे मारणे के लीये जो शर्ते थी वो सारी लक्ष्मण मे थी (यज्ञ पूरा ना होना , 13 साल तक ना सोना और तीनो अस्त्रो से ना मरणा )फिर भी इंद्रजीत युद्ध करणे युद्धभूमी पे गये अपने पिता की आज्ञा का पालन करणे |
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शुक्राचार्य : -
शुक्राचार्य महर्षी भृगु के वंशज है |
शुक्राचार्य के पिता का नाम महर्षी कवि है |
शुक्राचार्य महर्षी भृगु के पोते है |
असूरो की रक्षा ,मार्गदक्षक , संभृद्धी की जिम्मेदारी शुक्राचार्य की थी |
शुक्राचार्य असूरो को भी सदा धार्मिक कार्यो की ओर प्रवृत किया करते |
शुक्राचार्य ने कडी तपश्चर्या करके मृत संजीविणी विद्या प्राप्त की थी जो की देवताओ के गुरु बृहस्पति के पास भी नही थी|
प्रल्हाद , विरोचण, बाली और पितामह भीष्म के गुरु भी शुक्राचार्य थे |
किशोरवस्था की आयु होते होते इंद्रजीत ने आपणे गुरु शुक्राचार्य से दीक्षा लेकर कई सिद्धीया प्राप्त कर लीं |
शुक्राचार्य ने इंद्रजीत को सिखाये हुए शास्त्र :-
आक्रमक अस्त्र : -
आईशीका अस्त्र , शुष्का अस्त्र , आर्द्र अस्त्र , क्रौंचं अस्त्र , मोहना अस्त्र , प्रशमणा अस्त्र , मानवा अस्त्र, वर्षणा अस्त्र ,शोषणा अस्त्र , संतापणा अस्त्र , विलापणा अस्त्र , सममोहणा अस्त्र , प्रसवपण अस्त्र , सब्दवेदास्त्र , पैशका अस्त्र , नलिका अस्त्र , तेजं प्रभा अस्त्र , शिशिरा अस्त्र ,सुदामणा अस्त्र , शिताईसु अस्त्र , संवर्ता अस्त्र, मौसला अस्त्र , सत्या अस्त्र , माया अस्त्र ,वैद्यधारा अस्त्र, तमासा अस्त्र, सौमणा अस्त्र , नागा अस्त्र , गरुडा अस्त्र, त्वष्टर अस्त्र , मानवस्त्र ,पार्वतस्र , भौमस्त्र , आग्नेयस्त्र , वारूणास्त्र , वायवयासत्र , सूर्यास्त्र , इंद्रास्त्र , मोहिनी अस्त्र , हायग्रीवा अस्त्र , रावाणा अस्त्र , रुद्रा अस्त्र , महेश्वरा अस्त्र, शिवा अस्त्र ,ब्रम्हास्त्र , नारायणास्त्र , ब्राहमशिर्षा अस्त्र , वैष्णस्त्र, पशुपतास्त्र , ब्रह्मांडा अस्त्र |
बचावात्मक अस्त्र या उपसंहारा अस्त्र :-
उपसंहार अस्त्र का उपयोग दुश्मन के अस्त्र खत्म करणे को होता है |
अस्त्र और उंके उपसंहार अस्त्र :-
अंधतामिश्र अस्त्र :==> महातरणी अस्त्र
पाखंड अस्त्र :==> गायत्री अस्त्र
अंध अस्त्र :==> चक्षूषमतासत्र
शक्तिनाश :==> विश्वावसुमहस्त्र
अंतक अस्त्र :==> म्रीत्युंजयास्त्र
सर्वस्मृतींनाशन अस्त्र :==> सर्वस्मृतिधारणास्त्र
भय अस्त्र :==> अभयंकराइंद्रस्त्र
महारोग अस्त्र :==> नामतराय अस्त्र
आयुरनाश अस्त्र :==> कळसाम्कार्शांनास्त्र
महासुर अस्त्र :==> मुलदुर्ग अस्त्र
मुक अस्त्र :==> महावाग्वडीन्यस्त्र
वेदातस्कर अस्त्र :==> महावरहस्त्र
हिरण्याकशीप्वस्त्र :==> उग्रानृसिंहस्त्र
बलिन्द्र अस्त्र :==> वामणास्त्र
हाइहय अस्त्र :==> भार्गवस्त्र
द्विविड अस्त्र :==> हलधार अस्त्र
राजसुर अस्त्र :==> वासुदेव अस्त्र
संकर्षण अस्त्र :==> प्रद्युंणास्त्र
कल्यास्त्र :==> कल्क्यस्त्र
ये सारे अस्त्र इंद्रजीत ने गुरु शुक्राचार्य से सीखे थे |
इंद्र और इंद्रजीत की लढाई :-
इंद्र को देवो के राजा कहते है |
इंद्र स्वर्ग के राजा कहलाते है |
इंद्र आकाशीय बिजली के , बारीश के , बहती नदी के देवो के देवता है |
वेदिक काल मे किसान बारीश के लीये इंद्र देव की पूजा करते थे |
ऋग्वेदा मे इंद्र का उल्लेख 250 से भी ज्यादा बार आया है |
देव और असूर हमेशा एक दुसरे से युद्ध करते थे |
ऐसे ही एक युद्ध मे असूरो के तरफ से रावण और मेघनाद ने हिस्सा लिया था |
युद्ध बहोत ही घनघोर हुवा, दौरान इंद्र और रावण एक दुसरे से द्वंद्व युद्ध करणे लगे उसमे रावण बेहोश हो गये |
रावण को इंद्र ने कैद करके अपणे रथ मे रखा था |
पिता को बचाने मेघनाद वहा पोहचे और फिर इंद्र और मेघनाद के बीच द्वंद्व युद्ध शुरू हुवा |
बहोत देर तक दोनो एक दुसरे से लडते रहे , कोई भी जीत नही रहा था, दोनो थक गये थे अंत मे मेघनाद ने इंद्र पर जीत हासील की |
मेघनाद ने युद्ध जितने के बाद अपणे पिता को छुराया और इंद्र को अपणे रथ को बांद के उसे घसिट ते हुए लेके जाणे लगा |
ये देख कर भगवान ब्रम्हा जी डर गये , उन्हे लगा की अब मेघनाद इंद्र को मार डालेगा |
तब ब्रम्हा जी प्रकट हुए और उन्होणे इंद्र को जीवनदान देणे की विनंती की मेघनाद ने इंद्र को छोर दिया |
ब्रम्हा जी ने मेघनाद को वरदान दिया की वो सभी युद्ध मे अजेयता रहेंगे सिर्फ एक शर्त होगी की युद्ध से पहले उन्हे अपणे कुलदेवी प्रथ्यंगिरा के लीये यग्न (पूजा )करना पडेगा |
ब्रम्हा जी ने मेघनाद को "इंद्रजीत " की उपदि दी |
तब से मेघनाद को सभी इंद्रजीत केहके बुलाणे लगे |
भगवान हनुमान और इंद्रजीत की लढाई :-
भगवान हनुमान वानर राजा केसरी और अंजनी देवी के पुत्र है|
हनुमान जी भगवान शिव के अवतार है |
हनुमान जी के धर्मपिता वायुदेव थे इसलीये उन्हे पवणपुत्र हनुमान भी कहते है |
हनुमान जी भगवान राम के सबसे बडे भक्त माने जाते है|
हनुमान जी का बचपण का नाम बजरंग था |
बचपन मे जब हनुमान जी सूर्य को पिला फल समजके निगलणे गये थे तब घुससे मे आके इंद्र देव ने हनुमान जी के जबडे पे वज्र से वार किया और बाल हनुमान धरती पे आके गीर गये |
वज्र के प्रहार से उंका जबडा तूट गया तबसे उन्हे हनुमान जी कहते है |
जब भगवान राम ने हनुमान जी को सीता माता को धुंडणे को भेजा तब हनुमान जी लंका पोहोच गये |
हनुमान जी का लंका जाने का सिर्फ यही एक हेतु नही था बल्की रावण की सेना की जासूसी करना उणकी ताकद जाणणा था |
जब हनुमान जी अशोक वाटिका पोहोच गये तब उन्होने अशोक वाटिका के सेना के साथ रक्षक जांभूमाली और इंद्रजीत के छोटे भाई अक्षय कुमार को युद्ध मे मार डाला |
ये बात सून कर इंद्रजीत क्रोदित हो गये और वो युद्ध के मैदान मे आये और हनुमान जी से युद्ध लडणे लगे |
इंद्रजीत ने बहोत सारे देवीक अस्त्रो का उपयोग किया लेकीन हनुमान जी पे उसका कोई असर नही हुवा|
आखीरकार इंद्रजीत ने ब्रह्मास्त्र का उपयोग किया और ब्रह्मास्त्र के प्रहार से हनुमान जी बेहोश हो गये और इंद्रजीत ने उन्हे कैद करके अपणे पिता के समक्ष खडा कर दिया |
भगवान राम ,लक्ष्मण और इंद्रजीत की लढाई :-
भगवान राम विष्णु के सातवे अवतार है |
भगवान राम का जन्म रघु कुल मे हुवा था |
भगवान राम राजा दशरथ और कौशल्या के पुत्र है |
भगवान राम को तीन छोटे भाई थे लक्ष्मण , भरत और शत्रुघ्न |
भगवान राम बचपण से ही शांत स्वभाव के थे |
भगवान राम ने मर्यादाओ को हमेशा से सर्वोचं स्थान दिया |
ईसी कारण उन्हे मर्यादा पुरुषोतम राम के नाम से जाणा जाता है |
भगवान राम का राज्य सबसे बडा न्यायप्रिय और खुशहाल माना जाता है |
भगवान राम ने अपने तिनो भाईयो के साथ गुरु वाशिठ से शिक्षा प्राप्त की |
माता कैकेयी के कारण प्रभू राम , लक्ष्मण और सीता देवी को 14 साल के वनवास के लीये जाना पडा |
भगवान राम बहोत बडे पितृभक्त थे |
भगवान राम ने अपने पिता के आज्ञा का पालन किया और वे वनवास के लीये चले गये |
वनवास मे बहोत सारी घटनाये घटी , उसमेसे ही एक घटना थी रावण की बहण सुर्पणखा की लक्ष्मण द्वारा नाक काटणा |
जब ये बात रावण को पता चली ,तो रावण ने अपने बहण के अपमान का बदला लेने के लीये सीता माता का अपहरण किया और उन्हे लंका ले गये |
फिर कूच ही साल मे भगवान राम लंका पोहोच गए और रामायण का युद्ध शुरू हुवा |
जब इंद्रजीत के सारे भाई युद्ध भूमी मे राम और ऊनके सेना द्वारा मारे गए तब इंद्रजीत युद्ध भूमी मे भगवान राम के विरुद्ध लडणे आये |
पहले ही दिन इंद्रजीत ने अपना कहर वनरो के सेना पे बरसाना शुरू किया |
सुग्रीव की पूरी सेना को इंद्रजीत ने अकेले ही हरा दिया |
अपने भाईयों का बदला इंद्रजीत वानर सेना को बडे क्रूरता से मार कर ले रहे थे |
जब भगवान राम और लक्ष्मण युद्धभूमी मे इंद्रजीत के आमने सामने आये तब उन तीनो मे बहोत बडा युद्ध शुरू हुवा लेकीन बहोत ही कम समय मे इंद्रजीत ने दोनो को हराया |
इंद्रजीत ने नागपाश अस्त्र का इस्त्तेमाल कीया था ईसीलीये भगवान राम और लक्ष्मण युद्धभूमी मे बेहोश हो कर गिर गये |
भगवान राम और लक्ष्मण को गरुड ने हनुमान जी के कहने पर बचाया था |
दुसरे दिन जब इंद्रजीत को पता चला की राम और लक्ष्मण मरे नही तो वो क्रोदित हो गये |
फिरसे एक बार राम-लक्ष्मण और इंद्रजीत आमनेसामने आये , तीनो मे बहोत घनघोर युद्ध हो रहा था सब उन्हीको देख रहे थे |
इंद्रजीत सभी अस्त्रो का मिश्रण कर रहे थे , आखिरकार इंद्रजीत ने वासावी अस्त्र का इस्त्तेमाल लक्ष्मण पे कीया |
वासवी अस्त्र के विष से लक्ष्मण बेहोश हो गये |
( वासवी अस्त्र से ही महाभारत मे महारथी कर्ण ने घटोत्कच को मारा था जो की उसने अर्जुन के लीये बचा के रखा था | )
तब हनुमान जी हिमालय से द्रोणगिरी पहाड लेके आये और वहा की संजीविणी जडी बुटी से लक्ष्मण जी की जान बचाई |
जब इंद्रजीत को पता चला की फिरसे एक बार लक्ष्मण की जान बच गायी तो वो अपने कुलदेवी प्रथ्यंगिरा के मंदिर मे करणे गये |
ये बात विभीषण को पता चली , विभीषणने भगवान राम और लक्ष्मण को समझाया की अगर इंद्रजीत ने ये यज्ञ पूरा किया तो इंद्रजीत को हराणा असंभव है |
ईसीलीये लक्ष्मण और विभीषण प्रथ्यंगिरा के मंदिर मे गये और उन्होने इंद्रजीत का यज्ञ असफल किया |
मंदिर मे यज्ञ करते समय शस्त्र लाना मना था इसलीये जब इंद्रजीत ने सामने लक्ष्मण को देखा तब वे निहात्ते थे |
इंद्रजीत ने यज्ञ के बर्तन से लक्ष्मण से ही लडणे लगे |
जब लक्ष्मण से जितना मुसकिल होणे लगा तो इंद्रजीत ने ब्रह्मांडा अस्त्र , वैष्णवा अस्त्र और पशुपतास्त्र का प्रयोग किया |
तीनो अस्त्र लक्ष्मण के सामने विफल रहे तब इंद्रजीत अचंभित हो गये और वहा से गायब हो गये |
इंद्रजीत अपने पिता के पास राजभवन मे गये और उन्होने पूरी घटना बताई और कहा ही राम-लक्ष्मण सच मे भगवान का रूप है और अगर सीता माता को अभी उन्हे वापस लौटा के माफी मांग ले तो शायद अपने पिता की और राक्षस जाती की रक्षा हो सक्ती है |
परंतु रावण अपने गर्व मे अंधे हो गये थे और उन्होने इंद्रजीत को युद्धभूमी छोडके आने वाला डरपोक कह कर अपमानित किया तब इंद्रजीत बहोत क्रोधित हुए और वो युद्धभूमी मे वापस लोट गये |
इंद्रजीत को मालूम हो गया था की उन्हे मारणे के लीये जो शर्ते थी वो सारी लक्ष्मण मे थी (यज्ञ पूरा ना होना , 13 साल तक ना सोना और तीनो अस्त्रो से ना मरणा )फिर भी इंद्रजीत युद्ध करणे युद्धभूमी पे गये अपने पिता की आज्ञा का पालन करणे |
video source:WE CAN SPIRIT
दोनो मे घनघोर युद्ध चालू हुवा कोई भी हार मानणे को तयार नही था |
आखीरकार लक्ष्मण ने इंद्रास्त्र का प्रयोग करके इंद्रजीत को मार दिया |
पिता की आज्ञा का पालन करते करते इंद्रजीत मारा गया और लक्ष्मण की जीत हुई |
महाभारत और रामायण मे एक मात्र इंद्रजीत योद्धा थे की जो अतिमहारथी थे |
जो योद्धा एक साथ 12 महारथियो के साथ लढ सकता है और उन्हकों हरा सकता है उस्से "अति-महारथी "कहते है |
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