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स्वराज्य के पहले सेनापति |हंबीरराव मोहिते | hambirrao mohite

मोहिते राजवंश का इतिहास 

                                                             image source:-Blogsbro

कराडप्रांत  तळबीड की जाहगिरी(वतन )  मोहिते राजवंश के पास थी | जब तुकोजी मोहिते लढाई के लीये दुसरे प्रांत गये तब गाव के डोमगुडे मुतालिक ने उंके घरवालों से जबरदस्ती वतन छीन  लिया | तुकोजी मोहिते ने अपना वतन वापस पाने के कई प्रयास किये लेकीन हर बार वो नाकाम्याब हो रहे थे |  तुकोजी मोहिते को संभाजी और धारोजी दो  पुत्र और एक तुकाबाई कन्या थी |



जब शहाजी महाराज निजामशाही छोड कर आदिलशाही मे शामिल हुए तब उन्हे हराने खुद निजामशाह और मलिकंबर सालपे के घाट मे आये | ऐसी संकट की स्थिति मे संभाजी मोहिते ने उन्हे मदत की और इसके बदले मे शहाजी  महाराज ने उन्हे तळबीड की जाहगिरी दी | बादमे संभाजी मोहिते ने शहाजी   महाराज के साथ अपने बहन  तुकाबाई  की शादी कारवाई और इस तरह मोहिते और भोसले परिवार एक हो गये |  


मूल कुल चाहमान(चव्हाण )
वंश सूर्यवंशी
वेद ऋग्वेद
राजगद्दी संबरीगड रणथंब
ध्वज श्वेत
देवक अष्टव
कुल मोहिते


हंबीरराव का बचपण 

संभाजी मोहिते को कुल 3 पुत्र हरीफराव , हंबीरराव , शंकरजी और 2 कन्या सोयराबाई और अण्णूबाई थी |   हंबीरराव का जन्म 1630 मे हुवा | उंका बचपण सुपे (पुणे से 70km) मे बिता | हंबीरराव के पिता संभाजी मोहिते एक बहोत बडे पराक्रमी और साहसी सरदार थे | हंबीरराव को अपने पिता से सभी गुण विरासत मे मिले थे |बचपण मे ही हंबीरराव को सैन्य शिक्षा दी गई | उंके पिता ने उन्हे वफादारी और स्वामिनिष्ठा सिकाई थी | हंबीरराव की शादी कब हुई और उंकी  पत्नी कोण थी इसके बारे मे कोई भी सबुत नही मिलते |  


कुछ  इतिहास्करों का मानना  है  की हंबीरराव ये शिवाजी महाराज ने उन्हे दी हुई एक उपादि है उंका असली नाम हंसाजी मोहिते था | 


स्वराज्य के सेनापति कैसे बने हंबीरराव 

नेताजी पालकर के बाद शिवाजी महाराज ने अपना सेनापति कुडतोजी(प्रतापराव ) गुजर को किया | जब प्रतापराव गुजर ने हाथ मे आये बहलोल खान को जीवनदान दिया तब शिवाजी महाराज बहोत क्रोधित हुए | इससे नेताजी दुखी हुए और उन्होणे अपने  सिर्फ 6 साथीदारों के साथ बहलोल खान की फौज पे आक्रमण किया  और  सभी शहीद हुए | इसके बाद शिवाजी महाराज ने अपने  सैन्य मे छोटे पद पर काम करणे वाले हंसाजी मोहिते को अपना सेनापति बनाया | इसके पहले हंबीरराव ने मुल्हेर किल्ले की खुद जासुसी करके उसे जीत लिया था | 


कोप्पळ की लढाई 


उस वक्त कर्नाटक का  कोप्पळ प्रांत आदिलशाह के सरदार अब्दुल  रहिमखान मियाना और उसका भाई हुसेन मियाना के पास था | दोंनो भाई किसानो का अनाज जबरदस्ती ले जाते थे | कोप्पळ की जनता ने शिवाजी महाराज से उंकी शिकायत की | तब महाराज ने अपने सेनापति हंबीरराव को ऊनसे निपटने  भेजा | येलबुर्गा मे जनवरी 1677 को दोंनो सेना आपस मे टकराई | हंबीरराव और धनाजी जाधव ने इस लढाई मे अतुलनीय पराक्रम किया | इस लढाई मे आदिलशाही की आधी  से ज्यादा सेना मारी गई | कोप्पळ की लढाई 6 प्रहर(18 घंटो ) तक लढी गई थी | हंबीरराव ने अब्दुलरहीम को मार दिया और हुसेनखान को कैद करके गोवळकोंडा मे शिवाजी महाराज के सामने पेश किया | शिवाजी महाराज ने कोप्पळ  किल्ले के बदले मे हुसेन खान की जन बक्ष दी |

हंबीरराव और व्यंकोजी के बीच लढाई 

महाभारत युद्ध  जैसे कौरव और पांडव भाईयों के बीच मे हुवा वैसे ही हंबीर राव और व्यंकोजी महाराज दोनो भाईयों के बीच लढाई हुई |

हंबीरराव के पिता संभाजी मोहिते  ने अपनी बहन तुकाबाई की शादी शहाजी महाराज से करवाई और दो बेटीयों की शादी शहाजी महाराज के दोनो पुत्रो  शिवाजी महाराज  और व्यंकोजी महाराज से करवाई थी | इस तरह से मोहिते और भोसले परिवार के संबंध और भी गहरे हुए | 

शिवाजी महाराज जब दक्षिणदिग्विजय के लीये कर्नाटक पोहोचे तब उन्होणे अपने सौतेले भाई व्यंकोजी महाराज को मिलने की इच्छा जताई | लेकीन व्यंकोजी महाराज डर के  तंजावर भाग गये | यह सुन के शिवाजी महाराज को बहोत दुख हुवा लेकीन  व्यंकोजी मानने  को तयार नही थे | शिवाजी महाराज ने व्यंकोजी को जायदाद मे अपना हिस्सा मांगा उसे भी व्यंकोजी ने देणे से मना किया | तब महाराज ने व्यंकोजी के प्रांत जितणे की आज्ञा हंबीर राव को दी | हंबीरराव ने व्यंकोजी के जगदेवगड , कावेरीपट्टम , चिदंबरम , वृद्धाचलम जैसे प्रमुख प्रांत जीत लीये | महाराज ने कर्नाटक मे जिथे हुए सभी प्रदेशो की जिम्मेदारी रघुनाथ हनमंते और हंबीरराव पे दे दी |हंबीरराव ने जिते  हुए प्रदेश की वार्षिक  आमदनी 20 लाख होन थी |

अपना प्रदेश शिवाजी ने हडप किया इस बात पे  व्यंकोजी महाराज बहोत नाराज हुए | 6 नवंबर 1677 मे व्यंकोजी और हंबीरराव मे लढाई हुई | लढाई मे व्यंकोजी की जीत हुई लेकीन बादमे हंबीर राव ने अचानक व्यंकोजी की सेना पे हमला किया और हारी हुई लढाई जीत ली | इसके बाद लगभग  2 महिनो तक दोनो मे छोटी मोटी लढाईया होती रही | शिवाजी महाराज के हस्तक्षेप से लढाई खतम  हुई |
       

  वेल्लोर किल्ले की लढाई    

                                                        image:wikipedia     

वेल्लोर का भुईकोट  किल्ला आदिलशाही सल्तनत  का सबसे महत्वपूर्ण किल्लों  मे से एक था | किल्ले के चारों  तरफ 20 मीटर की खाई थी और उसमे 10,000 से भी ज्यादा घडियाल थे | ऐसा किल्ला जितणा बहोत मुश्किल था | लेकीन हंबीरराव के नेतृत्व मे मराठो ने इस किल्ले की घेराबंदी की | किल्ले के आदिलशाही सरदार अब्दुल्लाखान  को मराठो ने एक साल तक रसद मिलने  नही दी | लेकीन अचानक किल्ले मे प्रकृती का प्रकोप हुवा और महामारी फेलने  लगी  तब 22 जुलाई 1678 को  अब्दुल्लाखान ने वेल्लोर किल्ला मराठो के अधीन किया |


शिवाजी महाराज की अंतिम लढाई  

औरंगाबाद प्रांत के पुरब दिशा से 40 मैल दूरी पे मुघलो की प्रसिद्ध जालना व्यापारी पेठ थी | सन 1679 मे शिवाजी महाराज और उनके  सेनापति हंबीरराव अपनी 18 हजार की सेना के साथ जालना शहर पे आक्रमण किया | 4 दिनो तक शिवाजी महाराज के सेना ने इस शहर से अगणित खजाना इकट्ठा  किया | लेकीन तब तक औरंगाबाद से मुघलो के केसरीसिंग और सरदारखान ने शिवाजी महाराज की सेना को घेर लिया | उन्होणे शिवाजी महाराज को मारणे की योजना बनाई थी लेकीन केसरीसिंग ने शिवाजी महाराज को भागणे के लीये मदत की | बहिर्जी नाईक ने दिखाए हुए रास्ते से मराठो की सेना 3 दिन और 3 रात तक भागते हुए स्वराज्य मे पोहोचे |
इस लढाई मे मिला हुवा सारा खजाना मराठो को खोना पडा , 4 हजार घोडे मारे गये और हंबीरराव भी घायल हूए | 


हंबीरराव का संभाजी महाराज को समर्थन   

3 अप्रेल 1680 को शिवाजी महाराज की मृत्यू हुई | ये बात उनके बडे बेटे संभाजी महाराज से छुपाई  गयी | 21 अप्रेल को शिवाजी महाराज के भ्रष्ट मंत्रियों ने राजाराम महाराज को गद्दी पे बिठाया | उस वक्त राजाराम सिर्फ 10 साल के थे |  राजाराम महाराज हंबीरराव के भतीजे थे |

उस वक्त हंबीर राव के पास दो विकल्प थे :-


1] अपने भातिजे को राजगड्डी पे बिठा के भ्रष्ट मंत्रियो का साथ देना |
2] शिवाजी महाराज के असली वारीस जो की संभाजी महाराज थे उन्हे राजगद्दी  पे बिठाना |

स्वराज्य के मंत्रियो ने संभाजी महाराज को कैद करणे की आज्ञा दी इस बात की खबर हंबीरराव को पता चली  तब हंबीरराव ने ही सभी मंत्रियो को कैद कर के संभाजी महाराज के सामने पेश किया | इससे पता चलता है की हंबीरराव की स्वराज्य के प्रती अपणी  निष्ठा  कितनी गहरी थी |



बुरहानपुर की लढाई 

बुरहानपुर शहर से शहाजान और औरंगजेब की भावनाए  बहोत गहरी थी | औरंगजेब की मां मुमताजमहल का देहांत बुरहाणपुर मे ही हुवा था | औरंगजेब की दोनो बहने रोशनआरा और गोहरआरा का जन्म यही पे हुवा था |औरंगजेब के छोटे भाई शहाशुजा  की पत्नी का देहांत यही हुवा था | औरंगजेब के दोनो बेटे आज्जम और मुअज्जम का जन्म यही पे हुवा था | औरंगजेब का इकलौता प्यार हिराबाई से बुरहाणपुर मे ही हुवा और उसकी कबर बुरहानपुर मे ही है  |

बुरहानपुर दक्षिण और उत्तर भारत को जोडणे वाला एक प्रमुख व्यापार का केंद्र था | बुरहानपुर मे कुल 17 व्यापार केंद्र थे | 

30 जनवरी 1681 सेनापति हंबीरराव मोहिते और संभाजी महाराज ने अचानक हमला किया | उस वक्त बुरहानपुर का सुबेदार खानजहान था | बुरहानपुर की सुरक्षा के लीये सिर्फ 200 की सेना थी और हंबीरराव के पास 20,000 की सेना थी | मुघलो के पास हंबीर राव की सेना का विरोध करणे की भी ताकद नही थी |मराठो ने 3 दिन तक बुरहानपुर के सारे व्यापार केंद्र लूट लीये | इस लढाई मे मराठो को 1 करोड होन से भी ज्यादा की संपत्ति मिली |

 बुरहानपूर के बाद हंबीर राव ने औरंगाबाद और नळदुर्ग पे भी आक्रमण करके मुघलो को हराया था |
17 मार्च 1683 को हंबीरराव ने कल्याण भिवंडी मे औरंगजेब के सबसे पराक्रमी सरदारो मे से एक रणमस्तखान को हराया |

हंबीर राव का अंत

1659 तक वाई प्रांत का सरदार अफजल खान था | अफझलखान  वध  के बाद वाई स्वराज्य मे शमिल हुई लेकीन आदिलशाह ने सर्जाखान को वाई प्रांत का सुबेदार किया | 1686 मे औरंगजेब  ने आदिलशाही मिटा दी और सर्जा खान को " रुस्तुमखान " उपादी दे के वाई जितणे भेजा | 

1687 मे वाई प्रांत के पास हुई लढाई मे हंबीरराव ने रुस्तुमखान  को हराया लेकीन अचानक आया हुवा  तोप का गोला  हंबीर राव को लग गया और वो शहीद हुए |     

शिवाजी महाराज के मृत्यू के बाद , सभी मंत्रियो के खिलाफ अपनी बहन का हित न सोच के हंबीरराव ने संभाजी  महाराज का साथ दिया | स्वराज्य के लीये अपने  फुफेरे भाई से लढाई की | जब संभाजी महाराज के अपने भरोसेमंद  लोग औरंगजेब से वतन के लीये  स्वराज्य से गद्दारी कर रहे थे तब भी हंबीरराव की स्वराज्य  के प्रती अपनी निष्ठा कम नही हुई |ऐसे इमानदारी बहोत कम लोगो मे होती है |  

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