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the greatest king in the history | Shivaji Maharaj | इतिहास के सबसे महान राजा शिवाजी महाराज

शिवाजी महाराज का जीवन परिचय एवं उनका इतिहास ।


Image Source:itl.cat

हमारा भारतवर्ष प्राचीन काल से ही वीर पुरुषों एवं वीर राजा शासकों की पृष्ठभूमि रहा है। हमारे भारतवर्ष के इतिहास में न जाने कितने ऐसे वीर पुरुषों का नाम दर्ज है? जिन्होंने अपनी मातृभूमि एवं स्वराज की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति तक दे दी है। आज हम आपको ऐसे ही एक महान योद्धा और वीर पुरुष शिवाजी महाराज के जीवन परिचय एवं उनके इतिहास के बारे में बताने वाले हैं। यह एक ऐसे वीर पुरुष थे , जिन्होंने पूरे भारतवर्ष में मराठा साम्राज्य की नींव रखी थी। शिवाजी महाराज के जीवन से यह पता चलता है , कि उन्होंने अपने पूरे जीवन काल में लगभग कई सालों तक मुगलों से युद्ध किया था। वह अपने स्वराज प्रेम के प्रति सदैव सहज रहे थे। चलिए जानते हैं , इस महापुरुष के पूरे जीवन परिचय एवं इतिहास के बारे में।



पूरा नाम शिवाजी शाहजी भोंसले
जन्म 19 फ़रवरी 1630(शिवनेरी)
मृत्यु 3 अप्रैल 1680(रायगड)
पिता शाहजीराजे भोंसले
माता जीजाबाई
शादी सईबाई निमबाळकर,सगुणाबाई शिर्के,सोयराबाई मोहिते,पुतळाबाई,लक्ष्मीबाई विचारे,सकवारबाई गायकवाड,काशीबाई जाधव,गुणवंताबाई इंगळे
पुत्र-पुत्री संभाजी, राजाराम,सखुबाई, रानुबाई,
राजकुंवरबाई, दिपाबाई, कमलाबाई, अंबिकाबाई
राज्याभिषेक 6 जून 1674 (रायगड)

शिवाजी महाराज का जन्म एवं उनका प्रारंभिक जीवन ?

                                                   Image Source: businesstraveller.com

भारत माता के वीर पुत्र का जन्म पुणे के जुन्नार गांव के शिवनेरी दुर्ग में फाल्गुन वद्य तृतीया शके 1551 यानी की 19 फरवरी 1630 में हुआ था। बचपन से ही शिवाजी महाराज एक बहादुर बुद्धिमान एवं निडर स्वभाव के व्यक्ति थे। शिवाजी महाराज बचपन से ही महाभारत और रामायण का अभ्यास बहुत ही ध्यान पूर्वक करते थे। शिवाजी के माता पिता का नाम शाहजी भोंसले और उनकी माता का नाम जीजाबाई था।   शिवाजी महाराज का नाम उनकी माता ने शिवनेरी किल्ले के शिवराई माता  के नाम के ऊपर रखा था। दक्खन सल्तनत के आदिलशाह के  लिए शिवाजी महाराज के पिता शाहजी भोंसले एक मराठा सेनापति के रूप में कार्य किया करते थे। उस समय शाहजी महाराज का वार्षिक उत्पन्न 20,00,000 होन था |  शिवाजी महाराज अपनी माता जीजाबाई से बहुत प्रेम करते थे। शिवाजी महाराज की माता ने शिवाजी महाराज को बचपन से ही युद्ध की कहानियां सुनाई है। खासतौर पर महाभारत और रामायण से संबंधित उन्होंने शिवाजी महाराज को बहुत सी कहानियां एवं उनसे संबंधित ज्ञान भी शिवाजी महाराज को दिए हैं। अपने माता द्वारा प्राप्त धार्मिक ज्ञान से शिवाजी महाराज को बहुत ही सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती थी और शिवाजी के जीवन में अपनी माता द्वारा सुनाई गई सभी धार्मिक कहानी उसका बहुत ही गहरा असर होता था। इन दो प्रमुख ग्रंथों की सहायता से ही उनकी माता ने  शिवाजी महाराज को हिंदू धर्म का महत्व समझाते थी और इसकी रक्षा करने के लिए उनको सदैव सकारात्मक ज्ञान दे दी थी। शिवाजी महाराज ने अपनी प्रारंभिक सैन्य शिक्षा में घुड़सवारी , तलवारबाजी और निशानेबाजी को सीखा था।


शिवाजी महाराज की पत्नीया 


पत्नी प्रांत वर्ष
सईबाई निमबाळकर फलटण 16 मई 1640
सगुणाबाई शिर्के रत्नागिरी
सोयराबाई मोहिते कराड 1642
पुतळाबाई पैठण 1653
लक्ष्मीबाई विचारे रायगड
सकवारबाई गायकवाड पुणे 10 जनवरी 1656
काशीबाई जाधव सिंदखेडराजा 8 अप्रेल 1657
गुणवंताबाई इंगळे कोल्हापूर 15 अप्रेल 1657


शिवाजी महाराज को मिली युवा अवस्था में स्वराज की रक्षा की जिम्मेदारी ?


                                                  Image Source: hotfridaytalks.com

जैसे ही शिवाजी महाराज ने युवा अवस्था में अपने कदम को रखा वैसे ही उनके ऊपर मराठा साम्राज्य की जिम्मेदारियां आ गई। बढ़ती जिम्मेदारियों के साथ शिवाजी महाराज की शक्ति एवं बुद्धिमानी भी तेज होती गई। मात्र 16 वर्ष की उम्र में 1646 ईस्वी में शिवाजी महाराज  अपने  युद्ध कौशल से  तोरणा किल्ला जीत लिया ।
2 सालों के भीतर ही शिवाजी महाराज ने शिरवळ प्रांत ,मुरुंबदेव(राजगड) प्रांत , कोंढाणा, सुभानमंगल और पुरंदर जैसे बडे किल्ले जीत लीये |जैसे ही शिवाजी महाराज ने इन सभी महत्वपूर्ण किले पर अपना अधिकार जमाया वैसे ही आदिल शाह के साम्राज्य में बहुत ही उछल पुथल मच गई थी। शिवाजी महाराज के बडते हुए वर्चस्व को देख के  आदिलशाह के अफझलखान ने  शाहजी महाराज को  कैद कर लिया | पिता की रिहाई के लीये शिवाजी महाराज ने कोंढाणा किल्ला आदिलशाह को वापस दे दिया |

भारत के नौसेना के जनक 

                                                        Image Source :-lokmat.com

भारत के नौसेना का जनक छत्रपती शिवाजी महाराज को कहा जाता है | शिवाजी महाराज के पहले गोवा के कदंब (960-1310 ) राजओ के पास छोटी नौसेना थी | उंके पहले राजा राजा चोल(947-1014) के पास नौसेना थी | करीब 650 साल बाद शिवाजी महाराज ने भारत की  शक्तिशाली नौसेना बनाई | मुघल ,आदिलशाह ,निजामशाह ,कुतुबशाह के पास भी खुद की नौसेना नही थी |

फरवरी 1658 को शिवाजी महाराज ने नौदल के लीये जहाज बनाने की शुरुवात की | उस समय जहाज बनाने के लीये पूर्तगाली बहोत प्रसिद्ध थे | इस लीये शिवाजी महाराज ने पहले उन्हे 20 जहाज बनाने का काम दिया लेकीन वो काम पुरा करे बिना भाग गये उसके बाद शिवाजी महाराज के सरदारों ने उसे पुरा किया | उसके बाद शिवाजी महाराज ने 12 देशो से समुद्री व्यापार शुरू किया |

उस वक्त की महासत्ता कहलाने वाले ब्रिटिश ,पूर्तगाल और डच को शिवाजी महाराज  की नौसेना बार बार हराया था |



शिवाजी महाराज के नौसेना मे कितने लढाऊ जहाज थे  





जहाज संख्या
बडे गुराब 30
छोटे गुराब 50
गलबत 100
तारवे 60
महागिरे 150
होडी 160
जग 15
पाल 25
मचवे 50
कुल 640



शिवाजी महाराज का राज्य विस्तार ?

                                                     Image Source: fineartamerica.com

शिवाजी महाराज ने अपने साम्राज्य को विस्तार रूप देने के लिए बीजापुर के  आसपास के इलाकों को अपने अंदर किया और वहां पर अपनी शक्ति का विस्तार करने लगे परंतु इस शक्ति का विस्तार करने में जावली नामक राज्य उनके कार्य में बाधा उत्पन्न कर रहा था। शिवाजी महाराज ने अपनी बाधा को हटाने के लिए कुछ समय बाद जावली के चंद्रराव मोरे से युद्ध किया जावली जीत  लिया। इसके साथ ही किले के अंदर सारी संपत्ति को अपने कब्जे में कर लिया और इसी बीच मुरारबाजी देशपांडे जैसे पराक्रमी सरदार  शिवाजी महाराज के साथ भी सम्मिलित हो गए थे।



अफझलखान का वध


                                           Image Source :-ameetkothari.wordpress.com

जब आदिलशाह के एक के बाद एक सारे सरदार शिवाजी महाराज को हराणे मे नाकायाब हो रहे थे तब शिवाजी महाराज को जिंदा पकड के लाने कि कसम अफजल खान ने ली | इसके पहले अफझलखान ने शिवाजी महाराज के बडे भाई संभाजी को  कणकगिरी के लढाई मे धोके से मारा था और शहाजी महाराज को भी कैद किया था |

ग्रँड डफ के अनुसार अफझलखान के पास 12,000 (5,000 घुडस्वार  और 7,000 पैदल ) सेना थी |

जब अफझलखान स्वराज्य मे आया तब उसने बडे बडे मंदिरों को तोडना शुरू किया उसने तुळजापूर और पंढरपूर के प्रसिद्ध मंदिर भी तोडे उसके पीचे उसका मकसद यही था कि शिवाजी किल्लों के नीचे आके मैदान मे लढाई करे लेकीन महाराज ने ऐसा नही किया |

10 नवंबर 1659 प्रतापगड के नीचे अफझलखान और शिवाजी महाराज कि मुलकात तय हुई उसी मुलाकत मे अफझलखान ने शिवाजी महाराज को धोके से मारणे कि कोशीश कि तब शिवाजी महाराज ने बाघनख से अफझलखान का पेट फाड दिया और संभाजी कावजी ने अफझलखान का सिर कट दिया |

अफझलखान के वध के बाद मुघलों से ले के अंग्रेजो तक सभी शिवाजी महाराज से डरणे लगे थे |   

स्वराज्य पे शाइस्ता खान का आक्रमण 

                                                        Image Source:haribhakt.com

अफझलखान के वध के बाद सिर्फ 15 दिन मे ही  शिवाजी महाराज ने पन्हाळा किल्ला जीत लिया | तब आदिलशाह के सरदार सिद्दी जौहर ने  पन्हाळा किल्ले कि घेरा बंदी की | इसका फायदा उटाते हुए औरंगजेब का मामा शाइस्ता खान ने स्वराज्य पे आक्रमण किया |शाइस्ता खान एक लाख से भी ज्यादा कि फौज लेके आया था |

3 मार्च 1660 मे शाइस्ता खान स्वराज्य आया | 3 साल शाइस्ता खान ने स्वराज्य मे बहोत लूटमार कि थी | शाइस्ता खान पुणे के लाल महाल मे ठहरा था  | 5 अप्रेल 1663 को शिवाजी महाराज और उंके 300 के सेना ने लाल महल पे छापा डाला और उस लढाई मे शाइस्ता खान कि 3 उंगलिया कट गयी | शिवाजी महाराज का खोफ शाइस्ता खान के मन मे ऐसा बिठा कि उसने 3 दिन मे ही 8 अप्रेल पुणे छोड कर भाग गया |


शाइस्ता खान को प्रती औरंगजेब कहा जाता था |औरंगजेब ने नाखुश हो के शाइस्ता खान को बंगाल भेज दिया |



शिवाजी महाराज का सूरत मे आक्रमण 

                                                       Image Source: rochhak.com


3 सालों तक शाइस्ता खान  ने स्वराज्य का  बहोत नुकसान  कीय था | शाइस्ता खान ने स्वराज्य के किसानों की खेती नष्ट की थी इस वजह से स्वराज्य को मिलने वाला महसुल बंद हुवा था |  इसलीये शिवाजी महाराज ने उस नुकसान की भरपाई के लीये सूरत पे आक्रमण किया | 6 जनवरी  1664 शिवाजी महाराज सूरत मे 4000 मावलों के साथ   दाखिल हुए | उस वक्त सूरत का सुबेदार इनायत खान था | जब शिवाजी महाराज सूरत मे आये तब इनायत खान किल्ले मे जाके छुप गया | सूरत के आक्रमण मे मुघलो का 1 करोड , डच लोगों का 20,000 पाउंड और ब्रिटिशों का 1,000 पाउंड का नुकसान हुवा | शिवाजी महाराज के सूरत से निकाल जाने के 8 दिन बाद मुघल सरदार महाबत खान सूरत की रक्षा के लीये पोहोचा |

Henry Garry (British) :-
surat trembles at the name of Shivaji 
(सूरत शहर शिवाजी महाराज के नाम से ही थरथराता था |)


क्या शिवाजी महाराज सच मे लुटेरे थे 


भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल  नेहरू  ने अपनी किताब The Discovery of India (भारत एक खोज ) मे शिवाजी महाराज को लूटेरा और दरोडेखोर कहा था | बादमे महाराष्ट्र से बहोत तीव्र निंदा होणे के बाद उन्होणे ईसे किताब से हटाया और माफी भी मांगी |

शिवाजी महाराज लूटेरे नही थे इसके कूच प्रमाण 

1] शिवाजी महाराज ने सूरत मे गरीबो से धन लूटा ऐसा कही भी जिक्र नही है |

2] शिवाजी महाराज ने सूरत मे सिर्फ मुस्लिम व्यापारीयो से धन नही लिया |

3] शिवाजी महाराज ने सूरत के किसी भी मस्जिद या मंदिर को कोई भी नुकसान नही पहुंचाया न ही उसे लूटा | 

4] शिवाजी महाराज ने सूरत मे  प्रजा का  कत्लेआम नही करवाया |

5] फ्रांसिस वैलेन्टिन अपने खत मे लिखता है की जब शिवाजी महाराज को सूरत मे अनगिनत खजाना मिला और इतना ज्यादा खजाना वो ले जाने मे असमर्थ थे तब उन्होणे उसमे से थोडा खजाना सूरत के गरीबो मे बाट दिया |

6] शिवाजी महाराज के सैनिको ने सूरत के किसी भी औरतों की इज्जत नही लूटी |

7] फ्रेंकोइस बर्नियर  उस वक्त सूरत मे मौजूद था उसने अपने किताब मे लिखा है  की  मोहनदास पारेख जो की सूरत के सबसे अमीर व्यापारीयों मे से एक था उस की मौत शिवाजी महाराज के आने के कूच दिन पहले हुई थी और वो एक नेक इंसान था जिसणे बहोत सारे धार्मिक कार्यो को मदत की थी (मंदिर बनाना , गरीबो की मदत करना ) | शिवाजी महाराज के सैनिको ने सूरत आक्रमनो के समय मोहनदास की हवेली की सुरक्षा की थी और उनसे फिरोती भी नही ली |

 पुरंदर की संधि 

                                                          Image Source:Wikipedia

जब औरंगजेब को सूरत के हमले के बारे मे पता चला तब औरंगजेब बहोत क्रोधित हुवा और उसने अपने सबसे पराक्रमी और भरोसेमंद सरदार मिर्झा राजे जयसिंग को स्वराज्य जितने  भेजा |  औरंगजेब ने जयसिंग के साथ दिलेरखान , राजा रायसिंग , बरकांदझ खान , झबरदस्त खान , सुजनसिंग ,पुरणमल बुंदेला ,किरतसिंग , दाऊदखान कुरेशी जैसे अन्य सरदारों को भेजा |

राजा जयसिंग ने औरंगजेब से 3 शर्ते मंजूर की थी    

1] शिवाजी को मिटाने के लीये जितना खर्च लगेगा वो दख्खन के मुघल सरदारों से मिलना  चाहिये |

2] मुघल सरदारों की रजा मंजूर करना या नही करना इसका आधिकार |

3] दख्खन के सारे मुघल सरदारों ने उन्के सारे हुकूम मानने होंगे | 

3 मार्च 1665 को जयसिंग पुणे मे आया | मिर्झा राजा जयसिंग बहोत ही धूर्त और चालाक था उसने शिवाजी  महाराज के खिलाफ जितने भी लोग थे उन्हे एक जुट करना शुरू किया उसमे आदिलशाह , कुतुबशाह ,
पूर्तगाली , डच और अफझलखान का बेटा फाजलखान थे | 

जब शिवाजी महाराज को पता चला की राजा जयसिंग को युद्ध करके हराया नही जा सकता तब  उन्होणे संधि करणे का तय किया |

पुरंदर संधि के 5 प्रमुख नियम 


                                                  Image Source:sambhajimaharaj.com


1] शिवाजी महाराज के पास 12 मुख्य किल्ले रहेंगे और 1 लाख होण का प्रांत रहेगा |

2] शिवाजी महाराज मुघलों के दख्खन के शाही सुबेदार के लीये काम करेंगे |

3] शिवाजी महाराज के बेटे संभाजी  को 5 हजारी मनसबदारी मिलेंगी |

4] शिवाजी महाराज को अपने 23 किल्ले और 4 लाख होण का प्रदेश मुघलों को देना पडेगा |

5] अगर शिवाजी महाराज ने आदिलशाह की तळकोकन और बालेघाट प्रांत जीत लिया तों वो उन्के  पास रहेगा बदले मे बादशाह को 40 लाख होण 13 साल के अंदर देणे होंगे |

पुरंदर के संधि के बाद शिवाजी महाराज को औरंगजेब से मिलने आग्रा जाना पडा | 

कोन से 23 किल्ले शिवाजी महाराज ने मुघलों को सोंपे  






पुरंदर रुद्रमाळ कोंढाणा लोहगड
ईसागड तुंग तिकोनो रोहिडा
नरदुर्ग माहुली भंडारदुर्ग पलसगड
रुपगड बख्तारगड मोर्बगड माणिकगड
सरूपगड साकरगड मरकगड अंकोला
कर्णाला सोनगड मानगड

 शिवाजी महाराज का आग्रा से पलायन


                                                             Image Source: sahisamay.com

12 मई 1666 को औरंगजेब का 50 वा जन्मदिन  था इसलीये मिर्झा राजे जयसिंग के कहने पे शिवाजी महाराज 5 मार्च 1666 को आग्रा जाने निकले | उंके साथ 4,000 भरोसेमंद लोग थे | जबसे शिवाजी महाराज आग्रा पोहोचे थे तब से उंका अपमान हो रहा था | जब शिवाजी महाराज दिवाण-ए-खास  मे आये तब उन्हे पंचहजारी मनसबदारों के पंक्ति मे जगह दी | शिवाजी महाराज के आगे जसवंतसिंग राठोड खडा था ये देख के उन्हे बहोत घुस्सा आया  (जसवंतसिंग को सिंहगड के एक लढाई मे मराठो ने बहोत  बुरी तरह हराया था ) | शिवाजी महाराज ने औरंगजेब की खिल्लत ठुकरा दी और भरे दरबार मे बादशाह का अपमान करके उसे पीठ दिखा के चले गये | इसके बाद औरंगजेब ने उन्हे नजरकैद किया |

जब शिवाजी महाराज को औरंगजेब की उन्हे मारणे की योजना का पता चला तब उन्होणे बिमार होणे का बहाणा बनाया | बिमारी से जल्द से जल्द ठीक होणे के लीये गरीबो मे और फकिरो मे मिठाई बांटने की अनुमती  मांगी  , बादशाह ने उसे तुरंत मंजूरी दे दी |

जेद्धे शकावली और मुघल इतिहासकार खाफिखान के अनुसार 19 अगस्त 1666 को मिठाई के टोकरियों मे बैठ कर भाग गये | जब औरंगजेब को ये बात पता चली तब  वो बहोत क्रोधित हुवा , उसने अपनी पुरी फौज शिवाजी महाराज को ढूंढने  को लगा दी |

12 सप्तंबर 1666 को शिवाजी महाराज राजगड पोहोचे | इसके बाद शिवाजी महाराज ने 4 सालों तक मुघलों के साथ कोई लढाई नही की | 


शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक कब हुआ ?

                                                              Image Source: amazon.in

काबुल मे जब पठानों ने विरोध किया और औरंगजेब के सारे सरदार उसे दबाणे मे नाकांयाब होने  लगे तो औरंगजेब खुद अफगानिस्तान को 7 अप्रेल 1674 को निकला | इस मौके का फायदा उठा के शिवाजी महाराज ने राज्याभिषेक के तैयारी  शुरू की |

1670 तक 26 साल स्वराज्य की राजधानी राजगड थी लेकीन 1667 को मिर्झा राजा जयसिंग की फौज राजधानी राजगड के नीचे तक आ गई  थी इसलीये शिवाजी महाराज ने अपनी राजधानी राजगड से रायगड बनाई |एक मान्यता के अनुसार राज्याभिषेक के दिन 4,500 राजे रायगड मे आये थे |

राज्याभिषेक के लीये शिवाजी महाराज ने 32 मण सोने का सिंहासन बनाया था | (1 मण = 40 किलो सोना , याने 1280 किलो सोने का सिंहासन )

काशी के प्रसिद्ध गागाभट्ट पंडित ने शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक किया | राज्याभिषेक की शुरुवात 6 जून 1674 को सुबह 7 बजे  हुई थी | शिवाजी महराज का राज्याभिषेक देखणे 50,000 से भी ज्यादा लोग उपस्थित थे |

शिवाजी महाराज से  पहले राज्याभिषेक तो विजयनगर साम्राज्य के राजऔ  के भी हुए थे लेकीन वो छत्रपती या चक्रवती सम्राट नही हुए |



शिवाजी महाराज के घोडो का नाम क्या  था ? shivaji maharaj 

                                                              Image Source :innu.in

शिवाजी महाराज ने अपने जीवन का ज्यादा तर समय घोडो और पालखी मे ही बिताया है | शिवाजी महाराज का घोडों से अधिक लगाव था | शिवाजी महाराज हमेशा  कहते थे की  जिसके पास जितणे अधिक घोडे उसका उतना बडा साम्राज्य |शिवाजी महाराज हाथी का बहोत काम उपयोग करते थे |शिवाजी महाराज ज्यादा तर हिंदुस्तानी घोडों का इस्तेमाल करते थे | हिंदुस्तानी घोडे अरबी घोडों से कम गती से दौडते थे लेकीन ज्यादा दूर तक दौड  सकते  थे | शिवाजी महाराज के 7 घोडों के नाम उप्लब्द है | विश्वास , मोती ,गजरा ,इंद्रायणी ,तुरंगी ,रणवीर और कृष्णा |  


शिवाजी महाराज का संस्कृत के लिए महत्वपूर्ण योगदान 


शिवाजी एवं उनके परिवार में सभी लोगों को संस्कृत का बहुत ही अच्छे तरीके का ज्ञान था। इसीलिए शिवाजी महाराज ने संस्कृत भाषा को बहुत ही बढ़ावा प्रदान किया था। शिवाजी महाराज के राजपुरोहित केशव पंडित एक संस्कृत के कवि तथा बहुत बड़े शास्त्री भी थे। शिवाजी महाराज ने अपने सभी शासकीय कार्य को संस्कृत एवं मराठी भाषा में प्रयोग करने के लिए बढ़ावा दिया।

छत्रपती शिवाजी महाराज ने स्वभाषा के रक्षण के लीये राज्यव्यवहार शब्दकोश बनाया |

इतिहासाचार्य वि. का . राजवाडे के अनुसार 1628 मे खत लिखणे मे मराठी शब्दों का प्रमाण 14% था शिवाजी महाराज के प्रोत्साहन से वो 1677 मे 62 % हुवा |


क्या शिवाजी महाराज की हत्या हुई थी ?


                              Image Source: shivcharitrabybabasahebpurandare.blogspot.com


शिवाजी महाराज के मृत्यु के पीछे  कई  रहस्य है |

सभासद और चित्रगुप्त बखर के अनुसार शिवाजी महाराज की मृत्यु बुखार के वजह से हुई  थी |

ग्रँड डफ के अनुसार घुटने के दर्द से शिवाजी महाराज की मृत्यु हुई |

शिवाजी महाराज मृत्यु से कुछ महीने पहले पन्हाळा गड पे अपने   प्रिय पुत्र से मिलने  गये थे | मार्च के पहले हफ्ते वो वापस रायगड पोहोचे | उन्होणे 15 मार्च 1680 को अपने  छोटे पुत्र राजाराम महाराज की शादी जानकीबाई से बडी धूमधाम  से करवाई |

अगर शिवाजी महाराज सच मे बिमार थे  तो उन्होणे इतना बडा शादी का समारोह क्यों नही रद्द किया ?

मासिरे आलमगिरी और ब्रिटिश फॅक्टरी रेकॉर्ड मे लिखा है की खून की उल्टी से शिवाजी महाराज की  मृत्यु हुई |

शिवाजी  महाराज के मृत्यु के बाद रायगड के दरवाजे सभी के लीये बंद किये गये | उस वक्त के नियमों के अनुसार राजा की मृत्यु के बाद राजा के बडे बेटे को राजा बनाया जाता है लेकीन राजाराम महाराज का राज्याभिषेक किया  गया | शिवाजी महाराज की मृत्यु की खबर संभाजी महाराज से छुपाई गई | और संभाजी महाराज को कैद करने आदेश स्वराज्य के भ्रष्ट मंत्रियो ने दिये | 

इससे यही साबीत होता है की शिवाजी महाराज की मृत्यु प्राकृतिक नही थी |

शिवाजी महाराज का मृत्यु 3 अप्रेल 1680 को हुवा | उन्होणे किये हुए महान कार्यों  के वजह से आज भी लोग उन्हे पूजते है | शिवाजी महाराज का सपना था की अखंड हिंदुस्तान से विदेशी मुघालो को हटा  के मराठा साम्राज्य स्थापित करना | उन्के  जिते जी तो ये सपना पुरा नही हुवा लेकीन शिवाजी महाराज  के   अनुयायों ने उंका सपना पुरा किया |    
   





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