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Tanhaji -The Unsung Warrior | तानाजी मालुसरे




तानाजी मालुसरे मराठा वीर बहादुरों में से एक थे। तानाजी का जन्म महाराष्ट्र के गोदावली गांव में संन १६०० में हुआ था। तानाजी मालुसरे के पिता सरदार काळोजी और माता पार्वतीबाई थी | वे छत्रपति शिवाजी महाराज के घनिष्ठ मित्र थे और वीर निष्ठावान मराठा सरदार थे। तानाजी शिवाजी महाराज के बचपन के मित्र थे और दोनों बचपन में साथ खेलते थे। तानाजी और शिवाजी बचपन से ही एक दूसरे को अच्छी तरह से जानते थे। दोनों हर लड़ाई में एक साथ ही शामिल होते थे। हिंदवी स्वराज्य स्थापन करणे मे तानाजी मालुसरे का बहोत बडा योगदान था |

                                                   Image Source: myfreedo.in


शिवाजी महाराज ने बारा मावल प्रांतो से   लोगो को एक किया था  उन्मे कानाजी जेधे , बाजी पासलकर , तानाजी मालुसरे, सूर्याजी मालुसरे , येसाजी कंक , सूर्याजी काकडे , बापुजी मुदगल  देशपांडे , नरसप्रभू गुप्ते , सोनोपंत डबीर थे |
                                                         

11 जून 1665 को मिर्झा राजे जयसिंह और शिवाजी महाराज मे हुए पुरंदर के समझोते से शिवाजी महाराज को मुघलो से जिथे हुए 23 किल्ले मुघलो को वापस लौटाने  थे  उसमे कोंढणा भी शामिल  था | इसी समझोते के कारण शिवाजी महाराज को औरंगजेब से मिलने आगरा जाना पढा था | शिवाजी महाराज अपने सबसे विश्वासू सरदारो के साथ आगरा गये थे उन्मे तानाजी मालुसरे भी थे | औरंगज़ेब ने आगे चल चलकर सभी को बंदी बना लिया था। उसके बाद तानाजी और शिवाजी महाराज ने योजना बनाकर, मिठाई के पिटारे में छिपकर वहा से बाहर निकल गए। 


कोंढाणा लढाई के पहले भी तानाजी ने बहोत सारी लढाईया स्वराज्य के लीये जिती  थी | तानाजी ने जावली के जंगल मे छुपके  अफजल खान की पूरी सेना खतम कर दी थी | तानाजी मालुसरे ने कोकण के स्थानीय सरदारों भी हराया था  उन्मे पाली के दळवी , श्रीरंगपुर के सुर्वे शामिल थे | तानाजी मालुसरे के प्रशासन मे सिंधुदुर्ग किल्ले का निर्माण हुवा |         

एकबार छत्रपति शिवाजी महाराज की माताजी श्री जिजाऊ लाल महल के कोंढाणा किल्ले की और देख रही थी। यह देख कर शिवाजी महाराज ने अपनी माताश्री के मन की बात पूछी और तभी माताजी ने जवाब दिया के किल्ले पर लगा हरा जण्डा उनके मन को उद्विग्र कर रहा है। यह सुनते ही शिवाजी महाराज ने किल्ले को जितने का निर्णय कर लिया। शिवाजी महाराज की माताजी की इच्छा के कारण कोंढाणा किल्ले को जितना महाराज के लिए बेहद ज़रूरी था लेकीन तब शिवाजी महाराज बोल पडे "कोंढाणा जितने तो बहोत गये लेकीन वापस आया कोई नही , आम के बीज बहोत लागये लेकीन एक भी पेड बढा नही" | कोंढाणा किल्ला जितने के लीये बहोत बडे साहसी सरदार की जरूरत थी | तभी दरबार मे तानाजी अपने बेटे रायबा के शादी का न्योता लेके दरबार मे आये | तानाजी को जब पता चला की शिवाजी महाराज खुद कोंढाणा जितने जाने वाले है तब तानाजी ने कोंढाणा जितने की जिम्मेदारी अपने कंदोपे ले ली | तानाजी ने कहा था "आधी लगीन कोंढण्याचं मग माझ्या रायबा चं "(पहले शादी कोंढणा किल्ले की बादमे मेरे बेटे रायबा की )|

                                            Image Source:www.hindujagruti.org 

तानाजी अपने भाई सूर्याजी मालुसरे, शेलार मामा और 500 मावलो (सिपाई ) के साथ फरवरी 1670 मे कोकण से कोंढाणा जितने निकल पडे |


कोंढाणा किल्ले का नाम  "कौण्डिन्य"  बौद्ध भिक्षु  पे रखा गया था | ई.पू. 6 वीं शताब्दी मे गौतम बुद्ध के   सबसे पहले  अरहंत कौण्डिन्य बने थे | कोंढाणा किल्ला दो हजार साल पहले बनाया  गया था | कोंढाणा किल्ला नागनाईक राजा ने बनाया था | नागनाईक कोली समाज के थे | तानाजी मालुसरे भी कोली समाज के थे |कोली समाज के ही राजा राम पाटील ने जंजिरा किल्ला बनाया था |  


मुहम्मद बिन तुघलक ने 1328 मे राजा नागनाईक को हरा कर कोंढणा किल्ला जीत लिया | बादमे कोंढाणा शिवाजी महाराज के पिता शाहजी महाराज के नियंत्रण मे था | 1647 मे कोंढाणा स्वराज्य मे शामिल हुवा | 


दक्षिण भारत पे वर्चस्व स्थापित करने के लीये कोंढाणा  किल्ले का महत्व बहोत ज्यादा था  | कोंढाणा  किल्ला राजगड , पुरंधर और तोरना किल्ले के केंद्र मे आता है | कोंढाणा किल्ले को दो दरवाजे है कल्याण दरवाजा और पुणे दरवाजा | 

कोंढाणा किल्ले पे औरंगजेब ने उदयभान राथोड को किल्लेदार नियुक्त कीया था | उदयभान के पास 1500 की फौज थी उसमे राजपूत,अरब और पठाण थे | उदयभान अपनी ताकद के लीये बहोत महशूर था | उदयभान अपने हाथों से फौलाद को मरोडता  था | कोंढाणा किल्ले की पहरेदारी  मे खुद  उदय भान ध्यान देता था इसलीये कोंढाणा की सुरक्षा बहोत मजबूत थी |


                                             Image Source : 1.bp.blogspot.com

कोंढाणा  किल्ले की एक दिशा मे खडी चढाई थी और बहोत बडी खाई थी इसलीये उस जगह पे थोडी कम पहरेदारी थी | तानाजी ने  इसी जगह को  किल्ले मे चढणे के लीये  चुना | तानाजी ने अपनी सेना के दो भाग किये 100 मराठो की एक फौज अपने साथ ली और बाकी की सेना अपने  भाई सूर्याजी मालुसरे और शेलार मामा के साथ दरवाजे पे रक्खी | तानाजी के पास यशवंती नाम की  पालतू गोह (घोरफड) थी | यशवंती गोह  के पेट को रस्सी बांध के तानाजी ने उसे किल्ले के अंदर भेजा और उसी रस्सी से तानाजी और उनके साथी किल्ले के अंदर घुसे | किल्ले मे जाके तानाजी ने सूर्याजी के लीये दरवाजा खोला और मुघल ,मराठों के बीच  लढाई शुरू हुई |

उदय भान के सामने कोई भी टिक नही पा रहा था इसलीये तानाजी उदय भान के सामने आये | दोनो मे घमासान लढाई हुई | दोनो  भी हार मानने  को तयार नही थे | उदय भान के जोरदार प्रहार से ताणजी मालुसरे की ढाल तूट गयी | फिर भी तानाजी नही रुके उन्होने अपने तुरबान को हात पे बांधा और उदय भान से लढणे लगे | ढाल तुटने के कारण उदयभान के सारे प्रहार तानाजी अपने  हाथों  पर  लेने  लगे और उसी  मे वो गंभीर रूप से घायल हुए |

  
तानाजी को नीचे गिरा हुवा देख के सभी मराठे लढाई छोर कर भागने  लगे | ये देख सूर्याजी मालुसरे ने भाग रहे मराठो को रोका | सूर्याजी ने जिस रस्सी से मराठे किल्ले मे घुसे थे वो सारी रस्सीयां काट डाली और मराठो का भागने  का रास्ता बंद कर दिया | मराठो के पास लढणे के सिवा कोई चारा नही रहा | मराठे फिरसे लढणे लगे |

शेलार मामा ने उदय भान को मार डाला  और उदय भान की बच्ची हुई सेना सूर्याजी ने खतम कर दी | लढाई मे तानाजी की गंभीर रूप से घायल होणे से मृत्यु हुई |


                                                   

                                                             Image Source : wikipedia

अगले  दिन जब शिवाजी महाराज कोंढणा किल्ले पे आये तब उन्हे  वहा तानाजी नही दिखाई दिये शिवाजी महाराज ने सूर्याजी से पुछा  तानाजी कहा है तब सूर्याजी ने बताया तानाजी शहीद हुए है ये सुन के शिवाजी महाराज को बहोत दुख हुवा और वो बोल पडे "गड आला पण सिंह गेला  "   

और तब से कोंढाणा किल्ले का नाम " सिंहगड " रक्खा  गया |
  
 तानाजी ने अपने बेटे रायबा के शादी जैसे कार्य को महत्त्व न देते हुए उन्होंने छत्रपति शिवाजी महाराज की इच्छा को मानने का निर्णय लिया। वैसे तो महाराज की सेना में कई सरदार थे लेकिन उन्होंने तानाजी मालुसरे को कोंढाणा आक्रमण के लिए चुनना ज़रूरी समझा। छत्रपति शिवजी महाराज की इच्छा के अनुसार कोंढाणा "स्वराज्य" में शामिल तो हो गया मगर युद्ध के दौरान तानाजी मालुसरे शहीद हो गये । 


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6 टिप्पणियाँ

  1. Dear Vishal Sir,

    Your all information related history is very useful and informative. We can understand very easily. we need more information about War and Warriors.

    Thank you

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  2. The way you represent our history is so simple to understand and interesting. Keep it up.

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  3. Tanaji was great fighter n was loyal sardar of shivaji...its gud tht his bravary is recognised by someone...a grt respect to the director who brings movie abt his life, bravary....one should learn the loyalty from tanaji...how he help to shivaji raje to capture tht gadh..n finally shivaji raje accept tht GADH ALA PAN SINGH GELA..after his death in the battle of capturing tht fort

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