जब पांडव 13 वर्षों का वनवास पूरा करके हस्तिनापुर लौटे तब भगवान श्री कृष्णा ने पांडवों का पक्ष कौरवों के सामने रक्खा | पांडवो से द्यूत मे हारा हुवा इंद्रप्रस्थ श्री कृष्णा ने कौरवों से वापस मांगा लेकीन दुर्योधन ने उसे देणे से माना किया और श्री कृष्णा को अपमानित किया | तब कौरव और पांडवो के बीच युद्ध होना तय हुवा |
दोनो पक्षों ने मिल कर युद्ध के कूच नियम बनाए थे | युद्ध शुरू होने से कुछ दिनो बाद तक तो इन नियमों का पालन किया गया , लेकीन बादमे इन नियमों को कई बार तोडा गया और छल का सहारा लेकर योद्धाओ को मारा गया |
महाभारत के लीये कौरवो और पांडवो ने मिलकर बनाये हुए नियम :-
- लढाई सूर्योदय से पहले नही होगी और सूर्यास्त को खतम होगी |
- एक योद्धा के साथ एक ही योद्धा लढेगा |
- जिस योद्धा ने आत्मसमर्पण किया है उसे कोई भी योद्धा ना ही मारेगा और ना ही घायल करेगा |
- द्वंद्व युद्ध दो योद्धावों के बीच तभी हो सकता है जब दोनो के पास समान शस्त्र हो और दोनो समान रथ, हाती या घोडे पे स्वार हो |
- जिस योद्धा ने आत्मसमर्पण किया हो उसे युद्ध कैदी बनाया जाएगा |
- कोई भी योद्धा किसी भी निहत्थे योद्धा को ना ही मारेगा और ना हि घायल करेगा |
- बेहोश हुए योद्धा को कोई भी योद्धा ना ही मारेगा और ना ही घायल करेगा |
- जिस इंसान ने या पशु ने युद्ध मे भाग नही लिया उसे कोई भी योद्धा ना ही मारेगा और ना ही घायल करेगा |
- किसी भी योद्धा को कोई भी योद्धा पीठ पीचे से नही मारेगा |
- महिलाये , युद्ध कैदी और किसानो को कोई भी किसी भी तरह का नुकसान नही पहुचाएगा |
- कोई भी योद्धा किसी भी पशु पर सीधे तरिके से हमला नही करेगा |
- जिस शस्त्र को जो जो नियम दिये गये है उन सभी का पालन करना होगा |(उदाहरण :- गदा युद्ध मे कमर के नीचे वार करना सक्त माना है |)
पितामह भीष्म पतन के बाद सभी नियमो को तोडा गया | युद्ध मे कब , किसने छल का सहारा लेकर योद्धाओ का वध किया , आज हम आपको यही बता रहे है : -
शिखंडी ने किया पितामह भीष्म को पराजीत
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भगवान श्री कृष्ण को डर लगने लगा की अगर भीष्म ऐसे ही लढते रहे तो उन्हे खुद ही लढाई मे भाग लेना पडेगा | भगवान श्री कृष्णा को मालूम थ की पितामह भीष्म ने किसी भी औरत पे शस्त्र ना उठाने की शपथ ली थी |महाभारत के 10 वे दिन अर्जुन ने शिखंडी का सहारा लेके भीष्म को पराजित किया |
कौरवो ने की अभिमन्यु की हत्या
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युद्ध का एक नियम यह भी था की एक योद्धा के साथ एक ही योद्धा युद्ध करेगा और उनके बीच कोई दूसरा नही आयेगा | महाभारत के 13वे दिन जब कौरवों ने चक्रव्यूह रचा तो उसे कोई भी भेद नही पा रहा था | सिर्फ अर्जुन और श्री कृष्ण ही चक्रव्यूह को भेदना जानते थे | लेकीन कौरवो के तरफ से सुशर्मा ने अर्जुन को चक्रव्यूह से दूर व्यस्त रखा तब युधिष्ठिर के कहने पे अभिमन्यु , भीम और सात्यकी चक्रव्यूह भेदने गये | अभिमन्यु चक्रयुह के अंदर प्रवेश कैसे करना हे जानते थे लेकीन बाहर निकलना नही जानते थे | जब अभिमन्यु चक्रव्यूह मे फस गये तब कौरवों ने मिलकर को अभिमन्यु को मारा उसमे द्रोणाचार्य , कृपाचार्य , कृतवर्मा और कर्ण भी शमिल थे |
सात्यकी ने किया भुरीश्रवा का वध
Image Source:-wikipediaभुरीश्रवा बाहलिक राजा के पोते थे | भुरीश्रवा हस्तिनापुर गद्दी के असली उत्तराधिकारी थे लेकीन उन्होने हस्तिनापुर छोर कर बालहिक मे अपना राज्य स्थापित किया था | महाभारत के युद्ध मे भुरीश्रवा ने कौरवों का साथ दिया | महाभारत के 14वे दिन जब भुरीश्रवा और सात्यकी के बीच द्वंद्व युद्ध शुरू हुवा | दोनो मे पहले धनुरयुद्ध हुवा बादमे गदा युद्ध और अंत मे तलवार युद्ध हुवा | तलवार युद्ध करते समय भुरीश्रवा ने सात्यकी को हराया और जब भुरीश्रवा सात्यकी को मारणे ही वाले थे तब अर्जुन ने बाण से भुरीश्रवा का तलवार वाला हाथ काट डाला | अपने साथ हुए अन्याय को देख कर भुरीश्रवा उसि स्थान पे ध्यान के मुद्रा मे बैठ जाते है | तब सात्यकी अपने तलवार से निहत्थे बैठे भुरीश्रवा का सिर धड से अलग कर देते है | युद्ध नियमो के नुसार दो योद्धाओ के बीच द्वंद्व युद्ध मे कोई तिसरा योद्धा भाग नही ले सकता और निहत्थे योद्धा को कोई भी योद्धा न ही मार सकता है और न ही उसे घायल कर सकता है | अर्जुन और सात्यकी ने दोनो नियामों का उलंघण किया |
छल से किया द्रोणाचार्य का वध
पितामह भीष्म के बाद कर्ण के कहने पे द्रोणाचार्य को कौरवों का सेनापति बनाया गया | द्रोणाचार्य को हराणा पांडवो के लीये मुश्किल होणे लगा तब भगवान कृष्ण के कहने पे भीम ने अश्वत्थामा नाम के हाथी का वध किया और ऐसा कहने लगे की मैने अश्वत्थामा का वध कर दिया | ये सून कर द्रोणाचार्य को शोक लगा उन्होने पुष्टी करणे के लीये युधिष्ठिर को पुछा | युधिष्ठिर हमेशा सत्य वचन करते थे | युधिष्ठिर ने भी कहा अश्वत्थामा मारा गया है तब द्रोणाचार्य विलाप करणे लगे और रथ पे ही शस्त्र डाल कर ध्यान करणे लगे तभी धृष्टद्युम्न ने द्रोणाचार्य का सिर धड से अलग कर दिया |
सूर्यास्त के बाद किया गया जयद्रत का वध
अर्जुन ने किया निहात्थे कर्ण का वध
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17 वे दिन कर्ण को रोक पाना पांडवो को बहोत मुश्किल होने लगा | कर्ण ने नकुल ,सहदेव और युधिष्ठिर को हरा के उन्हे जीवनदान दिया | बादमे अर्जुन और कर्ण मे द्वंद्व युद्ध शुरू हुवा | दोनो मे घमासान युद्ध शुरू हुवा | युद्ध दरम्यान कर्ण के रथ का पहिया किचड मे धस गया | कर्ण ने अर्जुन को युद्ध कुछ देर के लीये रोकने को कहा और वो नीचे अपने रथ का पहिया निकालने लगे | तब भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को याद दिलाया की कैसे अभिमन्यु को कौरवों ने मारा उसमे कर्ण भी शामिल था | अर्जुन ने निहात्थे कर्ण को जो की अपने रथ से भी नीचे था उसे मारा |
भीम ने कमर के नीचे वार करके दुर्योधन का किया वध
18 वे दिन जब शल्य और शकुनी को पांडवो ने मार डाला तब दुर्योधन डर गया और वो तालाब मे छुप्प गया | तब पांडवो ने दुर्योधन से प्रस्ताव रखा की वो किसी भी एक पांडव के साथ किसी भी शस्त्र से द्वंद्व युद्ध कर सकता है | पांडवो के उकसाने पे दुर्योधन बाहर आया | उसने गदा युद्ध के लीये भीम को ललकारा क्युं की दुर्योधन भीम से गदा युद्ध मे कइ गुणा बेहतर योद्धा था | फिर भीम और दुर्योधन मे द्वंद्व गदा युद्ध शुरू हुवा | गदा युद्ध मे कमर के नीचे वार करना सक्त मना था फिर भी भीम ने दुर्योधन के जंघा पे वार किया |बुरी तरह से घायल होने से दुर्योधन की मृत्यु हुई |
जब अश्वत्थामा , कृपाचार्य और कृतवर्मा को दुर्योधन के हार के बारे मे पता चला तब वे तुरंत दुर्योधन के पास गये | अपने साथ हुए अन्याय का प्रतिशोध लेने के लीये दुर्योधन ने अश्वत्थामा को अपना सेनापति बनाया |अश्वत्थामा रुद्र के ग्यारवे अवतार थे | रात को अश्वत्थामा , कृपाचार्य और कृतवर्मा पांडवो के शिबीर मे गये | अश्वत्थामा ने उस रात पांडवो के सेनापति धृष्टद्द्युम्न ,शिखंडी ,युद्धमन्यू ,उत्तमौजस(अर्जुन का अंगरक्षक ), द्रौपदी के सारे पुत्र और अन्य कई पांडवो के बचे हुए योद्धाओ की हत्या की | अश्वत्थामा के रुद्र रूप से बच के भागने वाले सभी योद्धाओ को कृपाचार्य और कृतवरमा ने मार डाला | बादमे अश्वत्थामा ने अर्जुन की पत्नी उत्तरा के गर्भ पे ब्रह्मास्त्र
छोडा और इसी कारण भगवान श्री कृष्ण अश्वत्थामा को श्राप देते है |
1 टिप्पणियाँ
Nice read
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