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History of Sambhaji Maharaj | संभाजी महाराज का इतिहास

छत्रपति संभाजी महाराज का जीवन परिचय एवं उनका इतिहास 

                                         
                                                          Image Source:-sambhajimaharaj.com

जिस प्रकार छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपने स्वराज के प्रति हर एक प्रयास किए जिससे स्वराज  स्थापित हो सके | उसी प्रकार उनके बड़े पुत्र छत्रपति संभाजी महाराज ने भी अपने स्वराज को स्थापित करने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी | संभाजी महाराज बचपन से ही राजनीतिक समस्याओं का निवारण करने के लिए हर प्रयास किया करते थे | अपने पिता के जैसे संभाजी राजे ने भी स्वराज का सपना देखा था और उसको पूरा करने के लिए हर एक महत्वपूर्ण प्रयास किए थे जो उस समय जरूरी था | आज हम आपको इस लेख के माध्यम से छत्रपति संभाजी महाराज के जीवन परिचय एवं उनके पूरे इतिहास के बारे में बताने वाले हैं | अगर आप छत्रपति महाराज शिवाजी के पुत्र संभाजी राजे के जीवन परिचय को एवं उनके इतिहास को जानना चाहते हैं ,तो हमारे इस लेख को अंत तक अवश्य पढ़ें |


नाम संभाजी शिवाजी भोसले
उपनाम छावा ,शंभू राजे
जन्मदिन 14 मई 1657
जन्मस्थान पुरंदर
माता सईबाई
पिता शिवाजी महाराज
भाई बहन राजाराम महाराज,सखुबाई निंबाळकर ,अंबिकाबाई महाडिक, राणुबाई जाधव,दीपाबाई ,कमलाबाई पालकर  ,राजकूंवरबाई शिर्के  
पत्नी येसुबाई
संतान शाहू महाराज, भवाणीबाई
शत्रु मुघल , ब्रिटिश ,फ्रेंच ,डच , आदिलशाह ,पुर्तुघाल ,सिद्दी
मृत्यु 11 मार्च 1689



छत्रपति संभाजी महाराज का बचपन एवं परिवारिक परिचय 

                                                    Image Source:-sambhajimaharaj.com

छत्रपति शिवाजी महाराज के बड़े पुत्र के रूप में जन्मे संभाजी महाराज का जन्म 1657 में 14 मई को पुरंदर किले में हुआ था | जब संभाजी महाराज की आयु मात्र 2 वर्ष की थी , तब उनकी माता सईबाई का देहांत हो गया था | यही वजह है , कि शिवाजी की माता जीजाबाई जी ने अपने पोते संभाजी का लालन पोषण किया था | संभाजी महाराज मात्र 13 वर्ष की उम्र में ही 13 भाषाओं के ज्ञाता हो गए थे |  संभाजी महाराज ने अपनी कम उम्र में ही कई शास्त्र भी लिख दिए थे | इतना ही नहीं संभाजी महाराज घुड़सवारी , तीरंदाजी , तलवारबाजी तो बड़े आसानी से ही सीख लिया करते थे , जैसे मानो इनके लिए यह सभी प्रकार के कार्य किसी बाएं हाथ के कार्य जैसे ही होते थे |  संभाजी महाराज मात्र 9 वर्ष की उम्र में ही शिवाजी महाराज  के साथ आग्रा गए थे |आग्रा से भागणे मे संभाजी महाराज ने बहोत बडी जिम्मेदारी निभाई थी | संभाजी महाराज की माता का नाम सईबाई था और यह छत्रपति शिवाजी महाराज की पहली पत्नी थी | संभाजी महाराज के छोटे भाई का नाम राजाराम महाराज था और यह सोयराबाई के पुत्र थे | छत्रपति संभाजी महाराज दो संताने थी शाहू महाराज और भवानी बाई  |


संभाजी महाराज का शिक्षण 


जिसके पिता छत्रपति शिवाजी महाराज सभी क्षेत्रों में निपुण रहे , तो उनके पुत्र इन सभी ध्यान से कैसे अनभिज्ञ रह सकते थे . छत्रपति संभाजी महाराज बहुत ही बुद्धिमान उठे और उन्होंने कई सारी भाषाओं का ज्ञान बहुत कम उम्र में ही प्राप्त कर लिया था | अन्य भाषाओं के अलावा संभाजी महाराज को संस्कृत भाषा का भी बहुत अच्छे तरीके से ज्ञान था | संभाजी महाराज ने अपनी छोटी उम्र में ही कई सारे शास्त्र भी लिख दिए थे |


छत्रपति संभाजी महाराज की कौन-कौन सी रचनाएं हैं  

                                                   Image Source:-sambhajimaharaj.com

छत्रपति संभाजी महाराज ने मात्र अपनी 14 वर्ष की आयु में ही बुधभूषणम , नखशिखांत , नायिकाभेद तथा सातशातक यह तीन संस्कृत ग्रंथ लिखे थे।


छत्रपति शिवाजी महाराज और संभाजी महाराज के बीच में संबंध कैसा रहा था 

                                                   
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छत्रपति संभाजी महाराज का बचपन बहुत ही कठिनाइयों एवं विषम परिस्थितियों से होकर गुजरा है | संभाजी महाराज की माता की मृत्यु होने के बाद उनकी माता सोयराबाई यह चाहती थी , कि उनका पुत्र राजाराम छत्रपति संभाजी की जगह शिवाजी महाराज का उत्तराधिकारी बने | और शिवाजी महाराज के मंत्रियो को भी संभाजी महाराज का मंत्रियो के काम मे दखल देना पसंद नही था क्यूंकी वो मंत्री स्वराज्य से बेईमानी कर रहे थे | कई लोगों का यह मानना था शिवाजी महाराज और संभाजी महाराज के बीच मे कलह निर्माण हुए और इसी वजह से संभाजी महाराज स्वराज्य छोड कर दिलेरखान मुघल से मिल गये | लेकीन हाली मे  मिले हुए पत्र और उस समय के कागजो से यह पता होता है  की बार बार  होणे वाले मुघली और आदिलशाही आक्रमनों  से  स्वराज्य की बहोत हानी हो रही है इसी लीये खुद शिवाजी महाराज ने संभाजी महाराज  को  दिलेरखान के साथ मिले के  स्वराज्य पे होणे वाले आक्रमनो को कूछ दिनो के लीये ही सही लेकीन रोकणे को कहा था और इसी लीये संभाजी महाराज मुघलो से मिले थे | शिवाजी महाराज  अपने दोंनो पुत्रो से बहोत प्यार करते थे लेकीन स्वराज्य निर्माण करणे के वजह से वो उंके साथ ज्यादा वक्त नही दे पाते थे |



संभाजी महाराज का राज्याभिषेक कब और किस प्रकार हुआ था 

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मराठा साम्राज्य की स्थापना करने वाले शिवाजी महाराज की जब मृत्यु हुई तो उस समय पूरा मराठा साम्राज्य एवं उनके पुत्र संभाजी महाराज बहुत ही शोक में डूब गए थे | जैसे मानो उस समय स्वराज का सपना देखने वाले हर एक व्यक्ति का कुछ बहुत ही महत्वपूर्ण चीज विलुप्त हो गई हो | मगर उस विषम परिस्थिति में संभाजी महाराज ने अपने आपको और स्वराज की चाह रखने वाले हर एक व्यक्ति को संभाला और स्वराज के सपने को पूरा करने के लिए इसकी जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली | छत्रपति शिवाजी महाराज की मृत्यु के बाद कई लोगों की कामना थी , कि उनके सौतेले भाई राजाराम छत्रपति को शिवाजी महाराज का सिंहासन प्रदान किया जाए | मगर शिवाजी महाराज के उस समय के सेनापति हंबीरराव मोहिते ने इन सभी लोगों की कामना को पूरा नहीं होने दिया और 16 जनवरी 1681 में संभाजी महाराज का पूरे हिंदू रीति रिवाज एवं विविधता के साथ उनका मराठा साम्राज्य के लिए राज्याभिषेक किया गया | संभाजी महाराज का राज्याभिषेक होने के बावजूद भी कई ऐसे लोग राज्य में मौजूद थे , जो राजाराम महाराज  को मराठा साम्राज्य का सिंहासन प्रदान करना चाहते थे | राजाराम छत्रपति को सिंहासन प्रदान करने के लिए कई प्रकार के षड्यंत्र संभाजी महाराज के विरुद्ध में रचे गए थे | मगर संभाजी महाराज ने अपनी बुद्धिमता और विवेक के साथ सब कुछ सही तरीके से संभाल लिया | इसके साथ ही संभाजी महाराज ने संस्कृत के प्रकांड विद्वान कवि कलश को अपना सलाहकार नियुक्त किया और सभी षडयंत्र का पर्दाफाश करने के लिए अपने मित्र कलश को आदेश दिया | सलाहकार के रूप में कार्य करने वाले कलश जी ने संभाजी महाराज के खिलाफ हो रहे सभी प्रकार के षड्यंत्र का पर्दाफाश किया और सुचारू रूप से सिंहासन में विराजमान रहने के लिए संभाजी महाराज का सहयोग किया |


संभाजी महाराज के  अष्टप्रधान मंत्री 


छंदोगामात्य कवि कलश
पेशवा निळोपंत पिंगळे
चिटणीस बाळाजी आवजी
सेनापति हंबीरराव मोहिते
न्यायाधीश प्रल्हाद निराजी
डबीर जनार्दन पंत
पंडितराव दानाध्यक्ष मोरेश्वर पंडितराव
सुरनीस आबाजी सोनदेव
अमात्य(वाकनीस ) दत्ताजी पंत
अमात्य (मजुमदार) अण्णाजी दत्तो


संभाजी महाराज की राजमुद्रा 


"श्री शंभो: शिवजातस्य मुद्रा द्यौरिव राजते।
यदंकसेविनी लेखा वर्तते कस्य नोपरि।।" 

मुगल सम्राट औरंगजेब ने महाराष्ट्र पर कब आक्रमण किया था 



मराठा साम्राज्य  को स्थापित करने वाले शिवाजी महाराज की मृत्यु के बाद औरंगजेब ने सही मौका समझा जब स्वयं वह खुद-ब-खुद महाराष्ट्र पर आक्रमण करके मराठा समाज को खत्म करने के लिए पहुंच गया था | मुगल सम्राट औरंगजेब ने 1682 ईस्वी में मराठा साम्राज्य पर अपनी पूरी शक्ति के साथ आक्रमण किया था | औरंगजेब ने मराठा साम्राज्य पर आक्रमण करने के लिए अपने कुल 5,00,000 सैनिक एवं 14 करोड़ का खजाना , 40,000 हाथी , 70,000 घोड़े एवं 35,000 ऊंट लेकर महाराष्ट्र पहुंचा था | संभाजी महाराज की तुलना में औरंगजेब की सेना कई गुना अधिक थी और यही कारण है , कि औरंगजेब ने अपने सैनिकों को रुकने के लिए 3 मील दूरी तक टेंट लगवाया था | मुगल साम्राज्य के इतिहास में औरंगजेब की सेना उस समय विश्व भर में सबसे अधिक मात्रा की एवं शक्तिशाली सेनाओं में से एक थी | मगर संभाजी महाराज ने अपने मराठा सेना का नेतृत्व किया और सभी मराठा सैनिक औरंगजेब की विशाल सेना का डटकर मुकाबला करते रहे | संभाजी महाराज ने और मराठा सैनिकों ने औरंगजेब को एक भी किला जीतने का अवसर नहीं दिया था | औरंगजेब ने महाराष्ट्र में लगभग कई वर्षों तक रहकर मराठा साम्राज्य एवं हिंदुओं का अस्तित्व खत्म करने का भरपूर प्रयत्न किया परंतु , हर एक प्रयत्न में नाकाम हो जाता था | औरंगजेब ने मराठों के सभी राज्य हथियाने का प्रयास किया परंतु , वे इस प्रयास में भी असफल ही सिद्ध हुआ था |



क्युं संभाजी महाराज ने अपणे ही मंत्रियो को मार डाला 

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छत्रपती शिवाजी महाराज  के मृत्यु के बाद उंके मंत्री राजाराम महाराज को अपना अगला  छत्रपती बनाना चाहते थे  लेकीन राजाराम महाराज संभाजी महाराज छोटे भाई थे | रीति रिवाज के अनुसार राजा का सबसे बडा बेटा ही राजा बन सकता है | जब शिवाजी महाराज का देहांत हुवा तब राजाराम महाराज सिर्फ 10 साल के थे | राजाराम महाराज को सिंहासन पे बैठा के उंके मंत्री स्वराज्य हथियाना चाहते थे | (एक मान्यता के अनुसार शिवाजी महाराज को जहर देके इनही मंत्रियो ने मारा है) | जब संभाजी महाराज को उंके मित्र औरंगजेब के बेटे अकबरने उन्ही के मंत्रियो द्वारा लिखा हुवा पत्र दिखाया जिसमे संभाजी महाराज को मारो ऐसा लिखा था  तब  संभाजी महाराज ने सभी मंत्रियो को हाथी के नीचे कुछलकर  मारणे की आज्ञा दी | 

संभाजी महाराज का बुरहानपुर पे आक्रमण 


बुरहानपूर के काकर खान ने जब जजिया कर के लीये हिंदू जनता को तकलीफ देणे लगा |काकर खान के बारे मे यहा टक कहा गया है की उसने 100 से भी अधिक हिंदू मंदिरो को तोडा था | जजिया कर के लीये वो हिंदू औरतो के कान और हिंदू आदमीयो को आखें निकलता था | जब संभाजी महाराज को ये बात पाता चली तब उन्होणे बुरहानपुर पे आक्रमण करणे की योजना बनाई |  संभाजी महाराज को  बुरहानपुर के आक्रमण से  1 करोड होण से भी ज्यादा का खजाना और हीरे , मोती  मिले |     

दक्षिणी प्रांत के महाराजा चिक्कदेव पर शिवाजी महाराज का आक्रमण 



संभाजी महाराज ने मैसूर के एक राजा चिक्कदेव के साथ सुलह करने का प्रयत्न किया था , परंतु मैसूर किस राजा ने संभाजी महाराज द्वारा पहले सुलह के प्रस्ताव को खारिज कर दिया और उनके तीन  सरदारों के सिर को काट कर श्रीरंगपट्टनम के द्वार पर लटका दिया था | छत्रपति संभाजी महाराज ने इसका प्रतिरोध लेने के लिए त्रिचनाचली पर घेराबंदी कर दी , जो कि एक बड़ा युद्ध मैदान था और मराठा सैनिक मैसूर के इस राजा के सेना के ऊपर अग्निबाण चलाकर प्रहार करने लगे और उस राजा ने अंत में हार मान के संभाजी महाराज के शरण में आ जाता है |


पानी पर तैरने वाला पहला तोपखाने को संभाजी महाराज ने बनवाया था 

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संभाजी महाराज ने स्वराज की रक्षा करने के बारे में बहुत विचार किया और उन्होंने सोचा , कि स्वराज की रक्षा समुंद्र द्वार के जरिए अच्छे से की जा सकती है | अपने स्वराज की रक्षा के विचार पर उन्होंने अमल करते हुए 4 नए स्थानों पर जिसमें महाड , जेतापुर , कल्याण और राजापुर आते थे और इसमें इन्होंने अपनी नौसेना को तैयार किया और इसी 4 नए स्थानों पर नौसेना केंद्र को भी बनाया | इसके साथ ही संभाजी महाराज ने पानी पर तैरने वाला पहला तोपखाना तैयार करवाया |


कब और कैसे औरंगजेब ने संभाजी के साथ अत्याचार और धोखा किया  



वर्ष 15 फरवरी 1689 में मराठा साम्राज्य के संगमेश्वर मे संभाजी महाराज एक मामले की सुनवाई करणे गये थे , जोकि मुगल शत्रुओं के आगमन से अनजान थे |  संभाजी महाराज मामले की सुनवाई के लीये गये थे इस वजह से उंके पास 500-600 से ज्यादा सेना नही थी | इसी समय मुक़र्रब खान  की 5,000 मुघल सेना ने  संभाजी महाराज पे अचानक हमला कीया |  मुक़र्रब खान की सेना बहोत बडी थी और मराठा इस हमले से बेखबर  थे | मुक़र्रब खान ने देसाई वाडे को चारों तरफ से घेर लिया था जिसमे संभाजी महाराज ठेरे थे |इस लढाई मे स्वराज्य के सेनापति म्होळजी घोरपडे वीर गती को प्राप्त हो गये और संभाजी महाराज और कवि कलश को मुक़र्रब खान ने लोहे की जंजीरे डाल के पकड लिया | संभाजी महाराज को पकडणे के बाद मुक़र्रब खान ने थोडा भी वक्त बरबाद नही कीया क्योकी उसे मालूम था की अगर ये बात मराठो को समज  गयी तो को वो उसे जिनदा नही छोरेंगे इसलीये मुक़र्रब खान ने जलद से जलद अपनी सेना के साथ बहादुरगड(पेडगाव ) औरंगजेब के पास  पोहोच गया | 

  औरंगजेब ने मराठों पर इस विजय को बहुत ही शानदार तरीके से मनाने का आदेश दिया था | औरंगजेब के दरबार में जैसे ही संभाजी महाराज को प्रस्तुत किया जाता है वैसे ही संभाजी बोलता है , कि मराठों के ऊपर यह सबसे बड़ी विजय है और इसके लिए वह अपने घुटनों पर बैठ कर अपने अल्लाह को शुक्रिया अदा करने लगता है | औरंगजेब की इस स्थिति को देख कलश कहते हैं ,

यावन रावन की सभा संभू बंध्यो बजरंग ।
लहू लसत सिंदूरसम खुब खेल्यो रनरंग ।।
जो रवि छवि लछत ही खद्योत होत बदरंग ।
त्यो तुव तेज निहारी ते तखत त्यजत औरँग  ।।

हे मराठा साम्राज्य के महान योद्धा संभाजी देखिए खुद कपटी औरंग  आपके सामने नतमस्तक होकर आपकी शक्ति का सम्मान कर रहा है | ऐसी विषम परिस्थिति में भी कलश वीरता दिखाते हुए संभाजी महाराज से कहते हैं , कि देखिए महाराज एक दुश्मन आपके सामने अपने घुटने टेक रहा है |

संभाजी और कलश को इस्लाम धर्म कबूल करने के लिए सभी मुगल उनका उपहास करते थे और उनको तरह-तरह के तरीकों से इस्लाम धर्म को कबूल करने के लिए प्रताड़ित भी करते थे | अपने धर्म की एवं अपने हिंदुत्व की रक्षा करते हुए कलश और संभाजी महाराज मुगलों से कहते हैं , कि हिंदू धर्म एवं मराठा साम्राज्य एक ऐसा सम राज्य है ,जो सभी धर्मों से ऊपर और शांतिप्रिय स्वभाव का है | निडर रूप से संभाजी महाराज कहते थे , कि हम अपने प्राणों की आहुति दे देंगे , परंतु हम कभी भी इस्लाम धर्म को कबूल नहीं करेंगे |

कोणसी शर्तें रखी थी औरंगजेब ने संभाजी महाराज के सामने 

जब संभाजी महाराज को और कवि कलश को औरगजेब के सामने लाया  गया तब औरंगजेब ने संभाजी महाराज से सिर्फ 3 शर्ते की :-

1]  मुघलों से लूटा हुवा खजाना कहा छुपाके रखा है |

2]  कोण कोण से मुघल सरदारों ने तुम्हे मदत की |

3]  इस्लाम कबुल करो |      



संभाजी महाराज की मृत्यु कैसे हुई 

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संभाजी महाराज एवं उनके प्रमुख सलाहकार कलश के साथ मुकर्रब खान ने धोखाधड़ी से हमला करके उनको बंदी बना लिया था। संभाजी महाराज के साथ कलश को भी सबसे क्रूर मुगल शासक औरंगजेब के सामने प्रस्तुत किया गया |  औरंगजेब ने संभाजी को इस्लाम धर्म कबूल करने एवं अपनी सारी संपत्ति एवं मराठा साम्राज्य को मुगल के अधीन करने के लिए बहुत सी प्रताड़ना दी  परंतु संभाजी महाराज का विश्वास एवं स्वराज प्रेम टस से मस ना हुआ , वह कभी भी औरंगजेब जैसे क्रूर शासक के सामने झुकना पसंद नहीं करते थे | इतिहास से पता चलता है , कि क्रूर शासक औरंगजेब ने संभाजी महाराज और कवि कलश की जीभ काट डाली थी  | उसकी क्रूरता यहीं पर खत्म नहीं हुई उसने संभाजी महाराज के एक-एक करके कई अंगों को काटना शुरू कर दिया था | मुगलिया सल्तनत एवं क्रूर शासक औरंगजेब ने संभाजी महाराज के ऊपर असहनीय दर्द एवं आपत्तिजनक व्यवहार किया था |  संभाजी महाराज एक ऐसे मराठा शासक थे , जिन्होंने औरंगजेब द्वारा किए गए सभी जुल्मों एवं प्रताड़ना को शांतिपूर्वक बरदास कर ले जाते थे | संभाजी महाराज को और कवि कलश को औरंगजेब ने 40 दिन तक भयानक यातनाये दी |  अंत में विवश एवं परेशान होकर औरंगजेब ने 11 मार्च 1689 को संभाजी महाराज की गर्दन को धड़ से अलग कर दिया और उसे अपने राज दरबार पर टांग दिया था | सभी मराठों ने अपने महाराज की अंतिम संस्कार करने के लिए उनके अलग-अलग अंगों को सीना पड़ा था |  उस समय प्रत्येक मराठा सैनिक एवं मराठा शासकों के अंदर औरंगजेब के खिलाफ विरोध भरा पड़ा था |

संभाजी महाराज  के बलिदान के बाद क्या  हुवा 

11 मार्च 1689 को संभाजी महाराज का बलिदान हुवा | उसके बाद सब मराठा सरदार एकजूट हो गये सभी ने आपस के भेदभाव दूर कर के औरंगजेब के खिलाफ एक जंग शुरू की | संताजी घोरपडे ने संभाजी महाराज और अपने  पिता म्होळजी घोरपडे का बदला मुक़र्रब खान का सिर काटके ही लिया | संभाजी महाराज के बलिदान के बाद मराठे औरंगजेब से 18 सालों तक लढते रहे | अंत मे 3 मार्च 1707 को  औरंजेब महाराष्ट्र के भिंगार (अहमदनगर) गाव मे मर गया  | उसके बाद मराठो ने लगबग पूरे हिंदुस्तान मे अपना स्वराज्य बनाया |

संभाजी महाराज की उपलब्धियां 


1]  रामशेज जैसे स्वराज्य का  सबसे छोटा किल्ला मराठो के 600 मावलों ने  मुघलो की 20,000 की फौज से 6 सालों तक लढाया |

2]  सिर्फ 9 साल के कार्यकाल मे ब्रिटिश , डच ,पुर्तुघाल ,फ्रेंच ,सिद्धी और मुघलों को बार बार हराया |

3]  संभाजी महाराज ने खुद 120 से भी ज्यादा लढाईयों मे भाग लिया है  और सभी मे इनकी जीत हुई  |

4] संभाजी महाराज को 18 भाषा आती थी |

5]  सिर्फ 9 साल की उम्र मे ही संभाजी महाराज औरंगजेब के 5 हजारी मनसबदार बन गये थे |

6]  संभाजी महाराज के बलिदान के बाद सभी मराठा एक हो गये उन्हे औरंगजेब से लढणे का कारण मिला और उसके बाद मराठाओ ने औरंगजेब को वापस दिल्ली जाने नही दिया उसे महाराष्ट्र मे ही मरना पडा |


निष्कर्ष :-


आज के समय में हम जहां पर सांसे ले रहे हैं और जहां पर हम अपने धर्म का गुणगान करते हुए नजर आते हैं ,वह सभी इन वीर पुरुषों की देन की वजह से ही संभव हो पाया है | आज भी हमें प्रत्येक भारत के महापुरुष एवं वीर पुरुषों को सदैव याद करना चाहिए , क्योंकि उन्हीं लोगों की वजह से हमारा धर्म और हमारा स्वतंत्रता कायम हो सका है | यदि ऐसे महान  शासक नहीं होते तो आज हमारे धर्म का इतिहास कुछ और ही होता और हो सकता है , कि हिंदू धर्म का अस्तित्व भी नहीं होता | यदि हमारे द्वारा प्रस्तुत यह लेख आपको पसंद आया हो , तो आप इसे अपने मित्र जनों एवं परिजनों के साथ अवश्य साझा करें | यदि हमारे इस लेख में संभाजी महाराज से संबंधित कोई भी जानकारी रह गई हो या फिर आपका कोई विचार सुझाव हो तो आप हमें कमेंट बॉक्स में अवश्य बताएं |





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1 टिप्पणियाँ

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    जवाब देंहटाएं